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अप्रैल, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हमारे साहित्य गुरु

शहादत दो शहादत दो, हमें तुम और सहादत दो। मन चिंतन में हृदय की कन में, इतना ही इबादत दो।                  शहादत दो शहादत दो हमें तुम और सहादत दो । मन में भरा है चितवन चोर, पर अंधियारा दिया झकझोर। बगावत दो बगावत दो,  लड़ने की बगावत दो।                   शहादत दो शहादत तो हमें तुम और शहादत दो। जब कदम उठे मंजिल की ओर, नाकामयाबी ने मचाया शोर। ताकत दो ताकत दो, हमें बढ़ने की ताकत दो।                  शहादत दो शहादत दो हमें तुम और शहादत दो। चौमुख दिशा तुम्हें पुकारे, उत्तम अनंत कल्पना तुम्हारे। कलामक दो कलामक दो, हमें  ऐसी ही कलामक दो।                   शहादत दो शहादत दो हमें तुम और सहादत दो। हमें भी प्रकाशमान बना दो। तारे जैसे तुम चमका दो। सजावट दो सजावट दो, हमें सुंदर सी सजावट दो।                  सहादत दो शहादत दो हमें तुम और सहादत दो                               ।।।।।🖋🖊✒लेखक रामू कुमार📚📚

🌌सुहानी शाम🏙

देखो आई शाम सुहानी। संघ मे लाई नई कहानी । साथ में झिलमिल तारे चमके। ओस की बुंदे रिमझिम बरसे ।                 पेड़ सजाई जुगनू रानी ।                 चमके जैसे ओस की पानी।                 चिड़ियों के घर आई दिवाली,                 प्रकाशमान है पत्ते डाली। पानी में आकर चंदा मामा। नृत्य कला सिखलाते हैं। छोटे-बड़े जलचर मिलकर। उन्हें खूब नहलाते हैं।                  सीसकी लेकर हवा भी आई,                  रंग बिरंगी पत्ते लाई।                  पेड़ पौधों को झूमा झूमा कर।                  साथ साथ में खूब नचाई। हर घर में अंगीठी जलकर, लाल रूप दिखलाती है । माथे पे बर्तन को लेकर, सुगंधित स्वर में गाती है।                   उधर से आया मच्छर चोर,                   कानों में मचाया शोर।                   बड़ी दुखदाई उनकी बोली,                   भेदे हिर्दय मे  जैसे गोली। धीरे से आई काली रात। सुने ना कोई उनकी बात। नींद भरी लोरी सुना कर।  सब को ले गई अपने साथ।                          🖋🖋✒ लेखक रामू कुमार📚📚         My big brother and small brother    

शायराना

जब तेज हवा धरती को ठंडक पहुंचाती है, तो लोग उसे तबाही समझ लेते हैं। आशिकों को प्यार से जहर भी दो,                                    तो उसे  ओ बादशाही समझ लेते हैं। मैं तन्हाई में खामोश रहता हूं हर पल। तो लोग मेरी खामोशी को बीमारी समझ लेते हैं। 💠🔵💠🔵💠🔵💠🔵💠🔵💠 मांस को उर्दू में गोश्त कहते हैं। मस्त को बंगला में मोस्त कहते हैं। बगैर बताए जो दिल की बात समझे, वैसे हमदर्द को सच्चा दोस्त कहते हैं। 💠🔴💠🔴💠🔴💠🔴💠🔴💠 नापसंद चीज को लोग खराब कहते हैं। डरावना को संक्षिप्त में डराव कहते हैं। जब लोग दिले गम में डूब जाते हैं,  गम से निकालने वाली दवा को शराब कहते हैं 💠⚫💠⚫💠⚫💠⚫💠⚫💠 दोस्तों ये अदालत है। बड़ी अजीब हालत है। यह कैसा दस्तूर है। कानून भी मजबूर है। अपराधी मौज करें, और फंसता बेकसूर है। 💠🔘💠🔘💠🔘💠🔘💠🔘💠 गाड़ी के पांव को लोग टायर समझ लेते हैं। रणभूमि से भागे वीरों को कायर समझ लेते हैं। मैं अपनी दिले गम लिखता हूं आपको, तो आप मुझे खुश दिल शायर समझ लेते हैं।            ।।।।।लेखक रामू कुमार ।।।।।

गंगा नदी

नदी हूं नदी मैं गंगा हूं। जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं। ना इच्छा किसी की ना आशा किसी की। कहीं पांव पसारी कहीं सीमटी हूं।                 नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं। कहीं मैं गुफा में कहीं मैं चोटी पर। कहीं हूं मैं हंसती  कहीं हूं मैं रोती। ना अस्त्र हमें रोके न सस्त्र हमें रोके। चाहे आगे आ जाए  मुल्कों की सीमा।                   नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं कहीं कंचन कोकिल, कहीं रेत रेतीले। कहीं बर्फ की चादर, हमें ठंडी दे दे।                 नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं कहीं पे मै शीतल, कहीं पे मै दलदल। मेरी नीर मे होती है हलचल।                 नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं। कोई माता कहे, कोई कहे मुझे पानी। मानो तो मैं माता, नहीं तो मैं पानी ।                 नदी हूं नदी मै गंगा नदी हूं। कहीं पर मैं रात्रि, कहीं पे सवेरा। ना घर वार मेरा, ना कहीं पे बसेरा।                 नदी हूं नदी मै गंगा नदी हूं।                                                                   ।।।* लेखक रामू कुमार *।।।

*. कलम विवाह.*

कलम चले हैं दूल्हा बनकर, दुल्हन बनी हैं,, कॉपी । सतरंगी कपड़े पहन कर, चले हैं इंक बाराती।             लेंस और पटरी  रास्ता नापे,             रोशनी दिखाएं चांद।             एक टांग पर नाचे गाए,             उनके दोस्त प्रकाल। ससुर बने हैं पेंसिल दादा, ठक ठक  करते आते हैं। श्रद्धा भाव से अपने साथ, कलम को ले जाते हैं।               टेबल बनी है बड़ी बोर्ड,               सिलेट बनी है कुर्सी।               नाश्ते है अति रंगीन,               कटर से निकली भुर्जी। कॉपी की बिदाई में, पेंसिल रबड़ रो रहे हैं। पंडित डस्टर दावत खाके, पेट फुला कर सो रहे हैं।                 कलम की शादी धूमधाम से,                 कॉपी से हो जाति है।                  घर पे आकर कॉपी दुल्हन,                  किताबों में मिल जाती है।                    ।।।* लेखक रामू कुमार *।।।                                 

वर्षा

मेघा बरसे मेघा बरसे, हर्ष सजाई दिलों में।  पौधों को रसपान कराके, घर अपनाई झीलों में।             टिप टिप बरसे जैसे मोती,             सारे जहां को प्रेम से धोती।             सागर में बुलबुले उनके,             उभारते हैं अनेकों रोटी।  मस्त गगन में मस्त चमन में, नाचती गाती आती हैं।  बुड्ढे बच्चे और जवान को,  नई उमंग दे जाती है              हर गलियों में हर नदियों में,               टिप टिप राग सुनाती हैं।               बागों में पंछी को जाकर,               मस्त मगन कर जाती हैं। हवा भी उनके साथ साथ में, गजब सी धुन बनाती है। मेंढक मेंढकी उछल उछल कर, जोकड़ सा गाल  फुलाती है।       ।। *लेखक रामू कुमार *।।

कड़ाके की ठंड- हिंदी कविता

चांद तारे सब ठिढूर रहे हैं, पेड़ पे पंछी विटूर रहे हैं। * खेतों की रखवाली करते हैं झींगुर, झीपी झीपी राग है मंजूर। * बगुले कोयल बन कर बैठे, बाग में खाली ठंडी जैसे।  * आवन पावन धीमी चिराग, आहें भरते नई फिराग। * ओस की बुंदे बनी है सीत, उनसे बिछड़े उनके मीत। * बाट बटोही थक गए चल कर, गरम करे खुद हाथ को मल कर। * चली पवन जब सिसकी  लेकर, दूर हुई गर्मी ठंडी देकर। * मकड़ी जाल में फंसी है ओस, देखकर मकड़ी हुई बेहोश। * घड़ी भी टिक टिक शोर मचाए, दौड़ने को वह दिल ललचाए। * आग भी सो गई जोश दिखा कर, सोए हैं सब मुंह छिपाकर। * अत्यंत दुखदाई है यह ठंडी, हुए हैं कपड़े गंदी गंदी।              ।।। लेखक रामू कुमार ।।।

मार्गदर्शन

आपकी कविता की अहम कड़ी ने, आज मुझे झकझोर दिया। पालके डूबी थी निशा नींद में, एक पल में ही   भोर किया। ,,,,,, सागर   मई कल्पना में, मुझे अकेला छोड़ दिया। अशांत व्याकुल  आत्मा झिझक को, एक नया सा मोड़ दिया। ,,,,,,, निशा तले डूबी जग सारा, आकाश में आहें भरते तारा। नीरज कवि का कविता सुनकर, मन में हुई नई उजियारा। ,,,,,, कहीं भरी है शब्द की थाली, और कहीं है खाली खाली। एक पेड़ है सुनसान सी,  और कहीं है डाली डाली। ,,,,,,,  आपकी कविता ने आज मेरे,  आत्म चिंतन को जगा दिया। मन में उठते उग्रवाद को, जड़ समेत ही मिटा दिया,। ।।।।।।  लेखक रामू कुमार ।।।।।।

।। वतन में प्रदूषण।।

v> वतन तेरे याद में खुद को खो  दिए, आज तेरे हालत देखकर हम तो रो दिए। सच और निष्ठा का नाम भुला दिया, पानी और हवाओं में जहर मिला दिया। ,,,,,,, हिंदू और मुस्लिम में कुचक्र डालकर, भाई और भाई का गला काट कर। शांति अमन और चैन सब खो दिए, वतन तेरे याद में हम तो रो दिए। ,,,,,,, पर्व और त्यौहार में नशा मिल गया, सारे पर्यावरण में जहर मिल गया। ऐसी दशा देखकर दिल दहल गऐ, वतन तेरे याद में हम तो रो दिए। ,,,,,,, 1947  मे जब मिली थी आजादी, आजादी के नाम पर खिली आबादी। धीरे धीरे नेता और कानून सो गए, वतन तेरे याद में हम तो रो दिए। ,,,,,,, धर्म अब कमाने का जरिया बन गया, नदियाॕ अब सिमट कर दरिया बन गया।  कंचन कोकिलावन में अशांति छा गए,  वतन तेरे याद में हम तो रो दिए। ,,,,,, रंगीन वतन  पे सफेदी सा चढ़ गये, कोरा कागज दिल में कालिक सा लग गए हम तो खुद रोए और तुम भी रो दिए, वतन तेरे याद में खुद को खो दिए।                                ।।।।। लेखक रामू कुमार।।।।।

व्याकुलता।

जीवन के अनेक रंगों में,  हमने भी रंग मिलाया है। ना तेल मिला ना मिला है बाती,   पानी में दिया जलाया है। ,,,,,,,  कुछ  कर जाने की जज्बा, मन में जब दौड़ लगाती है। तभी पुरानी यादों की पहलू मन मस्त मगन मुस्काती है। ,,,,,,,  जीने की तमन्ना सदियों से हैं,  जिंदगी रास ना आती है। कुछ कर जाएंगे मर जाएंगे, यही उपहास सताती है। ,,,,,,, ना चांद रहा आसमानों में, तारे भी छुप कर  बैठ गए। मन व्याघ्र भंवरों में गोता लगा कर, कुछ पल में ही बैठ गए। ,,,,,,,  आंखों की नमी सहारे, हमने भी राते काट दिए। सुबह होते ही पन्ने पर लिखकर, सब दोस्तों में बांट दिए। ।।।।। लेखक रामू कुमार।।।।।