मेघा बरसे मेघा बरसे,
हर्ष सजाई दिलों में।
पौधों को रसपान कराके,
घर अपनाई झीलों में।
टिप टिप बरसे जैसे मोती,
सारे जहां को प्रेम से धोती।
सागर में बुलबुले उनके,
उभारते हैं अनेकों रोटी।
मस्त गगन में मस्त चमन में,
नाचती गाती आती हैं।
बुड्ढे बच्चे और जवान को,
नई उमंग दे जाती है
हर गलियों में हर नदियों में,
टिप टिप राग सुनाती हैं।
बागों में पंछी को जाकर,
मस्त मगन कर जाती हैं।
हवा भी उनके साथ साथ में,
गजब सी धुन बनाती है।
मेंढक मेंढकी उछल उछल कर,
जोकड़ सा गाल फुलाती है।
।। *लेखक रामू कुमार *।।
हर्ष सजाई दिलों में।
पौधों को रसपान कराके,
घर अपनाई झीलों में।
टिप टिप बरसे जैसे मोती,
सारे जहां को प्रेम से धोती।
सागर में बुलबुले उनके,
उभारते हैं अनेकों रोटी।
मस्त गगन में मस्त चमन में,
नाचती गाती आती हैं।
बुड्ढे बच्चे और जवान को,
नई उमंग दे जाती है
हर गलियों में हर नदियों में,
टिप टिप राग सुनाती हैं।
बागों में पंछी को जाकर,
मस्त मगन कर जाती हैं।
हवा भी उनके साथ साथ में,
गजब सी धुन बनाती है।
मेंढक मेंढकी उछल उछल कर,
जोकड़ सा गाल फुलाती है।
।। *लेखक रामू कुमार *।।
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