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सपनों की उड़ान- भाग 2/Sapno ki udaan hindi story

Sapno ki udaan
 
सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 2) मे आपका स्वागत है!

 शाम का समय, बादलों के बीच से चांद झांक रहा था!
खगोलीय पिंड आतिशबाजी के सामान चमचमा रहे थे!

नंदू- आंगन में बिछी चटाई पर लेट कर आकाशीय सौंदर्य निहार रहा था!वह अपने आप को बादलों में सम्मिलित करना चाहता था!अपने आप को खुला  विचरण करने की कल्पना में डुबो
 दिया था!उसके मन में नए-नए विचार उत्पन्न हो रहे थे!
मन ही मन सोच रहा था!काश मैं भी औरों की तरह घूमता फिरता दोस्त बनाता खुली वादियों मे गुनगुनाता !
मालूम नहीं मेरे जीवन में ये तमाम खुशियां कब आएगा!

अचानक प्रभा की आवाज - नंदू के मरुस्थलीय सपनों का दीवार चूर चूर कर देती  है!
प्रभा- नंदू तुम्हें उसी वक्त बोली थी एक सलाई लेकर आओ लेकिन तुम तो तारे गिनने में व्यस्त हो!
जल्दी जाओ दुकान बंद हो जाएगा!
नंदू- ना चाहते हुए भी अपने बोझील शरीर को धरती से सहारा लेकर  उठता है, जैसे कोई वृद्ध व्यक्ति हो,
नंदू- अपने मां से जो जला कटा शब्द सुना था,वही सब दुकान में जाकर उतारता है!
नंदू दुकानदार से-सलीम भाई ,ओ सलीम भाई,
सलीम खिड़की पे आकर - क्या हुआ नंदू क्यों चींख रहे हो, 
नंदू- यैसे क्योंअकड़ रहे हो ये लो पैसा एक सलाई दो 
और इतना आंकड़ा मत करो कोई फ्री में समान नहीं दे रहे हो

           (इसी तरह दोनों में बहस छिड़ जाती है)
और धीरे-धीरे विकराल रूप ले लेता है,  नंदू काउंटर पर रखें शीशे की बोइआम जिसमें चीनी ,सोन पापड़ी ,नीली पीली चॉकलेट, इत्यादि रखे हुए थे ! एक ही झटके में सब नीचे उलट देता है!और ऊंचे स्वर में बोलता है  और अकड़ दिखाओ,
इतना कहते हुए अपने घर की तरफ भाग चलता है!
कुछ दुर चलने के बाद वो मन ही मन सोचता है ,यदी सलीम घर पर कम्पलेन कर दीया तो , आज पिता जी
मुझे जानसे मार डालेंगे?
अब मैं क्या करूं कहां जाऊं!
इतना कहते हुए आंगन में सलाई फेंक कर वहां से भाग जाता है
भागते भागते काफी थक जाता है!एक जगह बैठ कर अपने आप को संभालने की कोशिश करता है!लेकिन उसके पिताजी का डर उसे संभलने नहीं देता है! वो फीर उठकर खड़ा होता है
और रेलवे स्टेशन की तरफ भागने लगता है!वह इतना तेज भागता जा रहा था जैसे कोई भूखा शेर उसका पीछा कर रहा हो?रेलवे स्टेशन पहुंचकर ऐसा जान पड़ता है, जैसे वो कोई महारत हासिल कर लिया हो!चेहरे पे आजादी का नूर अलग से ही दिखाई दे रहा था!कुछ ही क्षणों में एक गाड़ी आती है,
सभी यात्री आर्मी के जवानों की भांति मोर्चा संभाल लेता है !
और गाड़ी रुकते ही सभी धावा बोल देता है!
नंदू-एक पल मे बगैर सोचे हुए गाड़ी में जाकर बैठ जाता है!
जनरल डब्बा होने के कारण मधुमक्खी के जैसे भीड़ खचा खच भड़ा पड़ा था!शोरगुल तो दशहरा मेला को भी फेल कर दिया था!
गाड़ी धक धकाती हुई सरकने लगती है!
नंदू का यह पहला यात्रा था,इसलिए थोड़ा विचलित था, और
चौकन मुद्रा में इधर-उधर डब्बे के पाठ पुर्जों को निहार रहा था!
गाड़ी भोपू के साथ अपनी चाल मे बड़ोतरी देती हुई आगे बढ़ती है ! दो स्टेशन गुजरने के बाद क्रॉसिंग के लीए गाड़ी खड़ी होती है!नंदू को प्यास इतना सताने लगता है!कि वह हर एक पानी पीने वाले व्यक्ति को अपने निश्चल नैनो से निहारने लगता है!परंतु कोई भी उसे पानी नहीं देता,धीरे-धीरे गाड़ी आगे सरकने लगती है!और फिर तेज भोंपू के साथ, रफ्तार पकड़ लेती है!

                 Read more>>सपनों की उड़ान भाग 3..              
                                                  (लेखक रामू कुमार)



 

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