सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 11) में आपका स्वागत है!
बाहर लगे पेड़ अभी तक बरस रहे थे!नमी ग्रस्त हवा ऐसे चल रही थी,जैसे कश्मीर से होकर आ रही हो !!
कुछ समय बाद, शिखा एक लोहे की रॉड और साथ में कुछ उपले लेकर आती है!
नंदू के पास रखती हुई, ये लीजिए आग कम हो गया है, इसे डालकर तेज कीजिए!नंदू अपना सिर नीचे किए हुए बोलता है ठीक है,
नंदू का शर्मीला स्वभाव देखकर, शिखा हंसती हुई चली जाती है!
और मन ही मन सोचती है, शर्माना तो हमें चाहिए लेकिन यह तो बिल्कुल उल्टा हो रहा है!
नंदू ,अग्नि देव को जैसे ही खोराक बढ़ाता है, वैसे ही अग्निदेव अपने पूरे शक्ति के साथ, यौवन का रूप धारण कर लेते हैं!
और नंदू के कपड़े से नमी को सोख लेते हैं!
नंदू कपड़ा बदल कर सोचता है, अब अपने क्वार्टर पे चलना चाहिए!लेकिन कठोर निर्णय लेने से पहले, उसकी चेतना एक बार शिखा से अनुमति लेने का सलाह मांगता है!यही सोचकर वह फिर अपना हाथ सेकने लगता है, और शिखा का इंतजार करने लगता है! लेकिन शिखा खाना बनाने में इतनी व्यस्त थी, की इधर आने का नाम ही नहीं ले रही थी! नंदू मन ही मन सोचता है, क्यों न उसे आवाज देकर बता दूं कि मैं जा रहा हूं!
लेकिन ,शर्मिंदगी की जंजीर नंदू को ऐसे कैद कर लिया था, जैसे किसी पुरानी वृक्ष को ढेर सारी लताऐं!
काफी समय गुजर जाने के बाद , जब सीखा वहां नहीं आती है,तब उसके मन में एक तरकीब सूझता है!
वह उस लोहे की रॉड को बाहर की तरफ फेंखते हुए इहो.. इहो..कि आवाज लगाने लगता है! जैसे किसी जानवर को भगा रहा हो!
इहो.. इहो.. की आवाज सुनकर,शिखा दौड़ती हुई आती है,और अपनी आंखें बड़ी बड़ी करके, इधर-उधर देखने लगती है!
बाहर कुछ नजर ना आने पर, वह नंदू से पूछती है क्या था?
नंदू धीमे स्वर में बोलता है,एक बड़ा सा कुत्ता था, जो अंदर की तरफ आ रहा था!
शिखा लंबी सांस खींचकर, ओ.......!शब्द के साथ अपने दिल को सुकून देती है!
और फिर नंदू से बोलती है, खाना तैयार हो गया है,चलिए खाना खा लीजिए! नंदू वेगैर कुछ बोले हुए हाथ धोने चला जाता है!
कुछ देर में सीखा खाना लेकर आती है!खाने में काफी कुछ था, वर्णन करना मुश्किल हो रहा है!
खाना खाने के बाद नंदू अपने क्वार्टर के तरफ चल देता है!
सीखा पीछे से आवाज लगाती है, शाम को भी आकर खाना खा लीजिएगा , क्वार्टर बदलने में बहुत समय लगता है!
नंदू शिखा के तरफ देखते हुए, इशारा से हाँ कहता है ,और फिर चलने लगता है!
शिखा अपने दरवाजे पे खड़ी होकर, नंदू को देखती रहती है, धीरे-धीरे नंदू उसके आंखों के सामने से ओझल हो जाता है!
नंदू,शाम तक अपना सामान, एक-एक करके लाता है, और नए क्वार्टर को नया रूप देता है!
वह इतना थक जाता है, जैसे वह मिलो दूर से, पैदल चलकर आया हो!...
Read more>>सपनों की उड़ान- भाग 12..
(लेखक रामू कुमार)
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