आपकी कविता की अहम कड़ी ने,
आज मुझे झकझोर दिया।
पालके डूबी थी निशा नींद में,
एक पल में ही भोर किया।
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सागर मई कल्पना में,
मुझे अकेला छोड़ दिया।
अशांत व्याकुल आत्मा झिझक को,
एक नया सा मोड़ दिया।
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निशा तले डूबी जग सारा,
आकाश में आहें भरते तारा।
नीरज कवि का कविता सुनकर,
मन में हुई नई उजियारा।
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कहीं भरी है शब्द की थाली,
और कहीं है खाली खाली।
एक पेड़ है सुनसान सी,
और कहीं है डाली डाली।
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आपकी कविता ने आज मेरे,
आत्म चिंतन को जगा दिया।
मन में उठते उग्रवाद को,
जड़ समेत ही मिटा दिया,।
।।।।।। लेखक रामू कुमार ।।।।।।
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