नदी हूं नदी मैं गंगा हूं।
जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं।
ना इच्छा किसी की ना आशा किसी की।
कहीं पांव पसारी कहीं सीमटी हूं।
नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं।
कहीं मैं गुफा में कहीं मैं चोटी पर।
कहीं हूं मैं हंसती कहीं हूं मैं रोती।
ना अस्त्र हमें रोके न सस्त्र हमें रोके।
चाहे आगे आ जाए मुल्कों की सीमा।
नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं
कहीं कंचन कोकिल,
कहीं रेत रेतीले।
कहीं बर्फ की चादर,
हमें ठंडी दे दे।
नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं
कहीं पे मै शीतल,
कहीं पे मै दलदल।
मेरी नीर मे होती है हलचल।
नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं।
कोई माता कहे,
कोई कहे मुझे पानी।
मानो तो मैं माता,
नहीं तो मैं पानी ।
नदी हूं नदी मै गंगा नदी हूं।
कहीं पर मैं रात्रि,
कहीं पे सवेरा।
ना घर वार मेरा,
ना कहीं पे बसेरा।
नदी हूं नदी मै गंगा नदी हूं।
।।।* लेखक रामू कुमार *।।।
जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं।
ना इच्छा किसी की ना आशा किसी की।
कहीं पांव पसारी कहीं सीमटी हूं।
नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं।
कहीं मैं गुफा में कहीं मैं चोटी पर।
कहीं हूं मैं हंसती कहीं हूं मैं रोती।
ना अस्त्र हमें रोके न सस्त्र हमें रोके।
चाहे आगे आ जाए मुल्कों की सीमा।
नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं
कहीं कंचन कोकिल,
कहीं रेत रेतीले।
कहीं बर्फ की चादर,
हमें ठंडी दे दे।
नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं
कहीं पे मै शीतल,
कहीं पे मै दलदल।
मेरी नीर मे होती है हलचल।
नदी मै नदी हूं गंगा नदी हूं।
कोई माता कहे,
कोई कहे मुझे पानी।
मानो तो मैं माता,
नहीं तो मैं पानी ।
नदी हूं नदी मै गंगा नदी हूं।
कहीं पर मैं रात्रि,
कहीं पे सवेरा।
ना घर वार मेरा,
ना कहीं पे बसेरा।
नदी हूं नदी मै गंगा नदी हूं।
।।।* लेखक रामू कुमार *।।।
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