उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे !
उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे !!
इनकर सतरंगी रंग !
भरे दिल में उमंग !!
नापे धरती से आसमां की दूरी रे !
उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!!
इनकर काले पीले मूंछ !
लंबे सीधे-साधे पूंछ !!
कभी दाएं कभी बाएं देखो मुड़ी रे !
उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!!
रंग रूप है निराले !
हवा इनको संभाले !!
कभी कटे कभी छंटे कहीं जुड़ी रे !
उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!!
संघ लेके उड़े धागे !
कभी पीछे कभी आगे !!
धागा ऐसे काटे जैसे कोई छुड़ी रे !
गिरी गिरी रे पतंग गिरी गिरी रे..!!
उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!!
गिरी गिरी रे पतंग गिरी गिरी रे..!!
( लेखक रामू कुमार)
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