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*. कलम विवाह.*

कलम चले हैं दूल्हा बनकर,
दुल्हन बनी हैं,, कॉपी ।
सतरंगी कपड़े पहन कर,
चले हैं इंक बाराती।
            लेंस और पटरी  रास्ता नापे,
            रोशनी दिखाएं चांद।
            एक टांग पर नाचे गाए,
            उनके दोस्त प्रकाल।
ससुर बने हैं पेंसिल दादा,
ठक ठक  करते आते हैं।
श्रद्धा भाव से अपने साथ,
कलम को ले जाते हैं।
              टेबल बनी है बड़ी बोर्ड,
              सिलेट बनी है कुर्सी।
              नाश्ते है अति रंगीन,
              कटर से निकली भुर्जी।
कॉपी की बिदाई में,
पेंसिल रबड़ रो रहे हैं।
पंडित डस्टर दावत खाके,
पेट फुला कर सो रहे हैं।
                कलम की शादी धूमधाम से,
                कॉपी से हो जाति है।
                 घर पे आकर कॉपी दुल्हन,
                 किताबों में मिल जाती है।
       
           ।।।* लेखक रामू कुमार *।।।
               
                

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