चांद तारे सब ठिढूर रहे हैं,
पेड़ पे पंछी विटूर रहे हैं।
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खेतों की रखवाली करते हैं झींगुर,
झीपी झीपी राग है मंजूर।
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बगुले कोयल बन कर बैठे,
बाग में खाली ठंडी जैसे।
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आवन पावन धीमी चिराग,
आहें भरते नई फिराग।
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ओस की बुंदे बनी है सीत,
उनसे बिछड़े उनके मीत।
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बाट बटोही थक गए चल कर,
गरम करे खुद हाथ को मल कर।
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चली पवन जब सिसकी लेकर,
दूर हुई गर्मी ठंडी देकर।
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मकड़ी जाल में फंसी है ओस,
देखकर मकड़ी हुई बेहोश।
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घड़ी भी टिक टिक शोर मचाए,
दौड़ने को वह दिल ललचाए।
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आग भी सो गई जोश दिखा कर,
सोए हैं सब मुंह छिपाकर।
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अत्यंत दुखदाई है यह ठंडी,
हुए हैं कपड़े गंदी गंदी।
।।।लेखक रामू कुमार।।।
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