दिन पर दिन अब दुख की रेखा !
काहे क्षेत्र फैलावे हो !!
अंतर मन में उपजे पीड़ा !
अक्षुजल नैयन बहावे हो !!
राहें चलते बाट बटोही !
रुक रुक मोहे समझावे हो !!
विपद् घड़ी में सगे सहोदर !
हर पल तोहे तड़पावे हो !!
कलयुग में सब सुख के साथी !
दुख में नाता छोड़ावे हो !!
दिन रात कुछो समझ न आवे !
सुंदर काया झुलसाबे हो !!
(लेखक रामू कुमार)
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