बरसाती धूप पेड़ के पत्तों के बीच से झांक रहा था!कुछ चिड़ियों की टोली पेड़ के पत्तों पे जमे पानी के बुंदो को अपने होठों से छू छू कर खेल रहा था!कभी-कभी एक साथ कई सारे बूंद नीचे गिर जाते थे!जिससे ऐसा प्रतीत होता था, मानो जोर की बारिश शुरू हो गई हो!
शिखा-मन में सोचती है दोपहर हो गई लेकिन अभी तक नंदू खाना खाने नहीं आये !लगता है उनका तबीयत फिर से खराब हो गया है!एक घंटा बित गया लेकीन नंदू का कोई थाह पता नहीं !
कुछ देर इंतजार करने के बाद, जब नंदू नहीं आता है, तो वह एक टिफिन में रोटी, दूध, सब्जी रख कर, सर पे दुपट्टा रखती हुई नंदू के क्वार्टर के तरफ निकल जाती है!
वहां पहुंचकर दरवाजा खटखटाती है!
नंदू-खाट पर पड़े-पड़े बोलता हैं, कौन हैं?
शिखा- मैं हूं शिखा दरवाजा खोलीए,
नंदू झटपट उठता है, अपना कपड़ा सही करता है, कुछ सामान वेसुधा स्थिति में पड़ होता है, उसे सही करता है, फिर दरवाजा खोलता है, चेहरे पर मुस्कान लेकर अंदर आने के लिए कहता है! शिखा टीफीन नंदू को देती हुई बोलती है! खाना खाने क्यों नहीं आऐ?
नंदू- अभी भूख नहीं लगा था!
शिखा- अब आपका तबीयत कैसा हैं?
नंदू-अपना सिर हिलाते हुए ठीक है!
शिखा अपनी हथेली नंदू के माथे पर रखती हुई बोलती हैं, कहां ठीक है!सर तो तवे जैसे गर्म है!पहले आप खाना खाकर दवा खाइए,2:00 बज रहा है, दूसरा खुराक तो आपको 12:00 बजे ही लेनी थी! ऐसे लापरवाही कीजिएगा तो ठीक होने में महीनों लग जाएंगे! आपको मालूम नहीं यहां का बुखार कितना खतरनाक होता है! नंदू हाथ मुंह धोता है ,और खाना खाता है!
शिखा दवा का खुराक बनाकर नंदू के हथेली पर रखती हुई, बोलती है, समय से दवा खाया कीजिए!अब आप कोई छोटे बच्चे नहीं है!नंदू दवा खाता है! फिर दोनों में थोड़ी बहुत वार्तालाप होती हैं!
शिखा- ठीक है अपना ख्याल रखिएगा मैं जा रही हूं!
और हां शाम को समय से आ जाइएगा!
बार-बार खाना गर्म करने से उसका स्वाद बिगड़ जाता है , यही कहती हुई वहां से अपने क्वार्टर की तरफ चल देती है!नंदू के मुंह से एक बार भी शिखा के रुकने के लिए, कोई शब्द नहीं निकलता है! वो वहीं अपने दरवाजे पर खड़े होकर एक टक लगाकर शिखा को देख रहा था!तभी अचानक कमरे से गिलास गिरने की आवाज आती है! शायद चूहा स्वादिष्ट सब्जी की सुगंध बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था! नंदू चौकते हुए कमरे में देखता है!
तभी उसका नजर टीफीन पे पड़ता है! वह अपना उंगली दांत से दबाते हुए ! शिखा के टिफिन तो यहीं छूट गया! वह शिखा की तरफ देखकर ऊंचे स्वर में बोलता है,सुनिए आपका टिफिन यहीं छूट गया,
शिखा वहीं से बोलती हैं,कोई बात नहीं शाम को लेते आइएगा,
शिखा चौराहे के मोड़ पर पहुंच कर एक बार नंदू के क्वार्टर के तरफ देखती है! नंदू अपने दरवाजे पर खड़ा था! और उसी के तरफ देख रहा था! शिखा वहीं रुक जाती है,और अपने दोनों हाथ ऊपर करके नंदू के तरफ इशारा करती हुई ,अंदर चले जाने के लिए बोलती हैं, नंदू को कुछ भी समझ नहीं आता ,आखिर हाथ ऊपर करके क्या बोल रही है! शायद हमें बुला रही हैं!इसीलिए दोनों हाथ ऊपर की है! नंदू वहां से सीधे शिखा के तरफ दौड़ते हुए चलने लगता है!
पास पहुंचकर - हां बताइए क्या बात है?
शिखा वहीं जोर जोर से हंसने लगती है!
नंदू घबरा जाता है ,और आश्चर्यचकित होकर एक टक लगाकर शिखा को निहारने लगता है! फीर सोचता है!
मैं तो कोई हंसने वाला बात बोला नहीं , ये तो बगैर मतलब हंसे जा रही है!
शिखा नंदू के सर पर हाथ से धक्का देती हुई,एकदम बुद्धू हैं आप!
नंदू- इसमें बुद्धू वाली कौन सी बात हुई,
आप बुलाएं मैं आ गया,
शिखा- मैं तो आपको अंदर जाने के लिए इशारा दे रही थी,
नंदू शर्मा जाता है, अपने हाथ से सर थपथपाते हुए उसी समय पीछे लौट आता है !
कमरे में आते ही खाट पर लेट जाता है! और शिखा की स्वाभाविक कल्पनाओं में डूब जाता है!
Read more>>सपनों की उड़ान- भाग 14..
(लेखक रामू कुमार)
टिप्पणियाँ