सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सपनों की उड़ान- भाग 13/Sapno ki udaan hindi story

 
सपनों की उड़ान- भाग 13/सपनों की उड़ान हिंदी कहानी

सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 13) में आपका स्वागत है!

बरसाती धूप  पेड़ के पत्तों के बीच से झांक रहा था!कुछ चिड़ियों की टोली पेड़ के पत्तों पे जमे पानी के बुंदो  को अपने होठों से छू छू कर खेल रहा था!कभी-कभी एक साथ कई सारे बूंद नीचे गिर जाते थे!जिससे ऐसा प्रतीत होता था, मानो जोर की बारिश शुरू हो गई हो!

शिखा-मन में सोचती है दोपहर हो गई लेकिन अभी तक नंदू खाना खाने नहीं आये !लगता है उनका तबीयत फिर से खराब हो गया है!एक घंटा बित गया लेकीन नंदू का कोई थाह पता नहीं !
कुछ देर इंतजार करने के बाद, जब नंदू नहीं आता है, तो वह एक टिफिन में रोटी, दूध, सब्जी रख कर, सर पे दुपट्टा रखती हुई  नंदू के क्वार्टर के तरफ निकल जाती है!
वहां पहुंचकर दरवाजा खटखटाती है!
नंदू-खाट पर पड़े-पड़े बोलता हैं, कौन हैं?
शिखा- मैं हूं शिखा दरवाजा खोलीए,
नंदू झटपट उठता है, अपना कपड़ा सही करता है, कुछ सामान वेसुधा स्थिति में पड़ होता है, उसे सही करता है, फिर दरवाजा खोलता है, चेहरे पर मुस्कान  लेकर अंदर आने के लिए कहता है! शिखा टीफीन नंदू को देती हुई बोलती है!  खाना खाने क्यों नहीं आऐ?
नंदू- अभी भूख नहीं लगा था!
शिखा- अब आपका तबीयत कैसा हैं?
नंदू-अपना सिर हिलाते हुए ठीक है!
शिखा अपनी हथेली नंदू के माथे पर रखती हुई बोलती हैं, कहां ठीक है!सर तो तवे जैसे गर्म है!पहले आप खाना खाकर दवा खाइए,2:00 बज रहा है, दूसरा खुराक तो आपको 12:00 बजे ही लेनी थी! ऐसे लापरवाही कीजिएगा तो ठीक होने में महीनों लग जाएंगे! आपको मालूम नहीं यहां का बुखार कितना खतरनाक होता है! नंदू हाथ मुंह धोता  है ,और खाना खाता है!
शिखा दवा का खुराक बनाकर नंदू के हथेली पर रखती हुई, बोलती है, समय से दवा खाया कीजिए!अब आप कोई छोटे बच्चे नहीं है!नंदू दवा खाता है! फिर दोनों में थोड़ी बहुत वार्तालाप होती हैं!
शिखा- ठीक है अपना ख्याल रखिएगा मैं जा रही हूं!
और हां शाम को समय से आ जाइएगा!
बार-बार खाना गर्म करने से उसका स्वाद बिगड़ जाता है , यही कहती हुई  वहां से अपने क्वार्टर की तरफ चल देती है!नंदू के मुंह से एक बार भी शिखा के रुकने के लिए, कोई शब्द नहीं निकलता है! वो वहीं अपने दरवाजे पर खड़े होकर एक टक लगाकर शिखा को देख रहा था!तभी अचानक कमरे से गिलास गिरने की आवाज आती है! शायद चूहा स्वादिष्ट सब्जी की सुगंध बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था! नंदू चौकते हुए कमरे में देखता है!
तभी उसका नजर  टीफीन पे पड़ता है! वह अपना उंगली दांत से दबाते हुए ! शिखा के टिफिन तो यहीं छूट गया!  वह शिखा की तरफ देखकर ऊंचे स्वर में बोलता है,सुनिए आपका टिफिन यहीं छूट गया,
शिखा वहीं से बोलती हैं,कोई बात नहीं शाम को लेते आइएगा,
शिखा चौराहे के मोड़ पर पहुंच कर एक बार नंदू के क्वार्टर के तरफ देखती है! नंदू अपने दरवाजे पर खड़ा था! और उसी के तरफ देख रहा था! शिखा वहीं रुक जाती है,और अपने दोनों हाथ ऊपर करके नंदू के तरफ इशारा करती हुई ,अंदर चले जाने के लिए बोलती हैं, नंदू को कुछ भी समझ नहीं आता ,आखिर हाथ ऊपर करके क्या बोल रही है! शायद हमें बुला रही हैं!इसीलिए दोनों हाथ ऊपर की है! नंदू वहां से सीधे शिखा के तरफ दौड़ते हुए चलने लगता है!
पास पहुंचकर -  हां बताइए क्या बात है?
शिखा वहीं जोर जोर से हंसने लगती है!
नंदू घबरा जाता है ,और आश्चर्यचकित होकर एक टक लगाकर शिखा को निहारने लगता है! फीर सोचता है!
मैं तो कोई हंसने वाला बात बोला नहीं , ये तो बगैर मतलब हंसे जा रही है!
शिखा नंदू के सर पर हाथ से धक्का देती हुई,एकदम बुद्धू हैं आप!
नंदू- इसमें बुद्धू वाली कौन सी बात हुई,
आप बुलाएं मैं आ गया,
शिखा- मैं तो आपको अंदर जाने के लिए इशारा दे रही थी,
 नंदू शर्मा जाता है, अपने हाथ से सर थपथपाते हुए उसी समय  पीछे लौट आता है !
कमरे में आते ही  खाट पर लेट जाता है! और शिखा की स्वाभाविक कल्पनाओं में डूब जाता है!

                Read more>>सपनों की उड़ान- भाग 14..
                                                
                                                 (लेखक रामू कुमार)


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सपनों की उड़ान- भाग 6/Sapno ki udaan hindi story

  सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 6) में आपका स्वागत है! सुबह का समय,, चिड़ियों की चहचहाहट सारे वातावरण में गूंज रही थी! सूरज बड़ी थाली के समान धीरे-धीरे ऊपर की ओर निकल रहे थे! कर्मचारी-नंदू को जगाता है! नंदूआंख मलते हुए उठता है, सीखा दरवाजे पर खड़ी होकर ब्रश कर रही थी,जब उसकी नजर नंदू पे पड़ता है,  बड़ा पजामा और कुर्ता देखकर खिलखिला कर हंस पड़ती हैं,नंदू शर्मा का सिर नीचे कर लेता है, कर्मचारी--नंदू जाओ फ्रेश होकर आओ,और कपड़े भी बदल लो,तुम्हारे कपड़े सूख गए होंगे,नंदू कपड़े बदल कर अपने आपको काफी हल्का महसूस कर रहा था,सुबह का नाश्ता करने के बाद कर्मचारी ,नंदू को लेकर बाहर की तरफ चल देता है!नंदू इधर-उधर ताकते हुए कर्मचारी के पीछे पीछे चलता रहता है!कुछ दूर चलने के बाद कर्मचारी एक बड़े से लोहे के दरवाजे के पास खड़ा हो जाता है!और फिर गार्ड रूम के तरफ बढ़ते हुए नंदू को वहीं ठहरने का अनुमति देता है!नंदू सिपाही के जैसे वही तन कर खड़ा हो जाता है!जैसे सीमा का रक्षा कर रहा हो!कर्मचारी  कर्मचारी ऑफिस में प्रवेश करता है,ऑफिस के अंदर एक वेटिंग हॉल बना होता है जिसमें कुछ- कुर्सियां लगी ...

सपनों की उड़ान- भाग 2/Sapno ki udaan hindi story

  सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 2) मे आपका स्वागत है!  शाम का समय, बादलों के बीच से चांद झांक रहा था! खगोलीय पिंड आतिशबाजी के सामान चमचमा रहे थे! नंदू- आंगन में बिछी चटाई पर लेट कर आकाशीय सौंदर्य निहार रहा था!वह अपने आप को बादलों में सम्मिलित करना चाहता था!अपने आप को खुला  विचरण करने की कल्पना में डुबो  दिया था!उसके मन में नए-नए विचार उत्पन्न हो रहे थे! मन ही मन सोच रहा था!काश मैं भी औरों की तरह घूमता फिरता दोस्त बनाता खुली वादियों मे गुनगुनाता ! मालूम नहीं मेरे जीवन में ये तमाम खुशियां कब आएगा! अचानक प्रभा की आवाज - नंदू के मरुस्थलीय सपनों का दीवार चूर चूर कर देती  है! प्रभा- नंदू तुम्हें उसी वक्त बोली थी एक सलाई लेकर आओ लेकिन तुम तो तारे गिनने में व्यस्त हो! जल्दी जाओ दुकान बंद हो जाएगा! नंदू- ना चाहते हुए भी अपने बोझील शरीर को धरती से सहारा लेकर  उठता है, जैसे कोई वृद्ध व्यक्ति हो, नंदू- अपने मां से जो जला कटा शब्द सुना था,वही सब दुकान में जाकर उतारता है! नंदू दुकानदार से-सलीम भाई ,ओ सलीम भाई, सलीम खिड़की पे आकर - क्या हुआ नंदू क्यों चींख रहे हो, ...

सपनों की उड़ान- भाग 1/Sapno ki udaan hindi story

  ( यह कहानी ग्रामीण परिवेश पर आधारित  है! जो की पूरी तरह काल्पनिक है !और इस कहानी में किसी भी जगह, व्यक्ति, वस्तु से कोई लेना देना नहीं है, आप इस कहानी को सिर्फ मनोरंजन के रूप में पढ़ सकते हैं! धन्यवाद!! ) सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 1) मे आपका स्वागत है! (जोरों की बारिश साथ में थोड़ी गर्जना लेकर इस नीले ग्रह पे धूम मचा रही थी!  पंछियों का सुर ताल उड़ते तंबू के समान उथल-पुथल हो रहा था! सभी नाले नदी से होर लगाने पे तूली थी!) एक ग्रामीण औरत प्रभा- अपनी टूटी हुई झोपड़ी संभालने में व्यस्त थी!उसका बेटा नंदू अपनी मां को लाख समझाने के बाद भी,छप्पर से गिरने वाली धारा को हथेली पे लोके जा रहा था!एकाएक बाहर से नंदू के पिताजी कीआवाज नंदू को विचलित कर देता है!और वह दौड़ कर बांस के बने खटोले पे बैठकर किताब पढ़ने लगता है!मां को इशारा करते हुए बोलता है मां पिताजी को मत बताना कि मैं पानी से खेल रहा था!प्रभा- आंख तरेरति हुई आंगन की तरफ चल देती है! बाहर से आवाज आता है ,अरे भाग्यवान कोई दरवाजा खोलने में इतना समय लगाता है!प्रभा चुपचाप दरवाजा खोल देती  हैं!  हाथ से छाता लेत...