चार माह बीत चुके थे,नंदू के माता पिता विषाद की चादर में धीरे-धीरे लिपटते जा रहे थे,
इधर कर्मचारी को नंदू की यादें झकझोर रहा था,और अंत मे उन्होंने निश्चय किया कि आज नंदू से मिलने जाऊंगा! कर्मचारी, ड्यूटी से आते वक्त सीधे नंदू के क्वाटर की तरफ चल देता है!लेकिन वहां नंदू नहीं मिलता है!कॉलोनी के लोगों से पूछने पर पता चलता है की,सेहत सही नहीं रहने के कारण वह बाहर क्वार्टर लेकर रहता है!कर्मचारी निराश होकर एक व्यक्ति से पूछता है!आपको पता है कि वह कहां रहता है !
कर्मचारी का प्रश्न निरुत्तर होकर वापस उसी के पास लौट आता है!दूसरे दिन कर्मचारी ड्यूटी से आते वक्त कंपनी के गेट
पर रुक कर नंदू का इंतजार करने लगता है!सभी कर्मचारी छुट्टी होते ही एक-एक करके बाहर निकलने लगते हैं!लेकिन नंदू कहीं नजर नहीं आता है!कर्मचारी अनिश्चित दशा में कुछ पल के लिए वहीं खड़ा रहता है!तभी एक गार्ड आकर उससे पूछता है, किसका इंतजार कर रहे हैं !कर्मचारी बोलता है नंदू को,
कार्ड मुस्काते हुए बोलता है - नंदू आज छुट्टी पर है, आप
कल आईऐगा,
कर्मचारी निराशा की गठरी सर पर लेकर, वापस अपने कमरे की तरफ चल देता है!
दूसरे दिन फिर कर्मचारी ड्यूटी खत्म होने के बाद कंपनी के गेट पर पहुंचता है!उस दिन फिर नंदू से मुलाकात नहीं हो पाता, शायद वह पहले ही निकल चुका था!
कर्मचारी तीसरे दिन वही प्रक्रिया जारी रखता है!आखिर लोग कहते हैं ना की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती!आखिरकार नंदू से तीसरे दिन मुलाकात हो ही जाती है!
दोनों का मुलाकात ,भरत मिलाप के समान ,बेहद करुणा पूर्ण था!
कर्मचारी-नंदू के कंधे पे हाथ रखते हुए ,चलो मेरे साथ मैं तुम्हें बढ़िया सा क्वार्टर दिलवाता हूं!
नंदू-अंकल जहां मै रह रहा हूं, वहां भी बढ़िया है!
कर्मचारी- अच्छा चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं!तुम्हारा क्वाटर भी देख लुंगा , कभी मुलाकात करना होतो हम सीधे वहीं आकर मिल लेंगे!
नंदू कर्मचारी को लेकर अपने क्वाटर के तरफ चलने लगता है!
रास्ते में ढेर सारी बातें होती है!
कुछ समय चलने के बाद नंदू का क्वार्टर आ जाता है!
कर्मचारी क्वार्टर के इर्द-गिर्द नजर दौड़ाता है!
गली में काफी गंदगी पड़ी होती है!कर्मचारी अपना नाक शिकुड़ाते हुए क्वार्टर में प्रवेश करता है!
कमरे में एक डोरी वाली खाट,कुछ बर्तन,और कुछ खाने पीने की चीजें बेसुधा पड़ी थी!सामने दीवार में एक कैलेंडर टंगा था!जिसमें कृष्ण राधा का फोटो छपी थी!
नंदू चाय पिना बंद कर कर दिया था ! इसलिए उसके कमरे में चाय बनाने वाली किसी प्रकार की सामग्री उपलब्ध नहीं था!
नंदू कर्मचारी के तरफ देखते हुए बोलता है!अंकल जी आप थोड़ा देर आराम कीजिए मैं अभी दो मिनट में आ रहा हूं!
कर्मचारी झटके में उचक्के होकर पूछता है ,कहां जा रहे हो?
नंदू सहानुभूति देते हुए ; बस अंकल जी थोड़ी देर में आया!इतना कहते हुए वह कमरे से बाहर की तरफ चल देता है!
कुछ ही क्षणों में नंदू होटल से गरम गरम पकौड़े और चाय लेकर आता है!
कर्मचारी-यह सब लाने की क्या जरूरत था !
नंदू- प्रफुल्लित होकर एक गलाश में चाय और प्लेट में पकौड़ा लेकर कर्मचारी के आगे बढ़ाते हुए ,लीजिए इतना ही हो पाया!
नंदू अभी खाट पर बैठना ही चाह रहा था,तभी बाहर से एक औरत की आवाज आती है,
नंदू बेटे... ओ नंदू बेटे...?
नंदू दरवाजे की ओर बढ़ते हुए ,जी आंटी जी ...!
औरत- नंदू बेटे देखो ना लाइट जलते जलते बंद हो गया मालूम नहीं क्या हो गया है!
नंदू -ठीक है चलिए मैं आ रहा हूं!
नंदू कर्मचारी को थोड़ी देर ठहरने का आग्रह करते हुए,कमरे से बाहर के तरफ चल देता है!
कर्मचारी कमरे में अकेले बैठकर मन ही मन सोच रहा था!
लड़का हो तो ऐसा!ईश्वर सभी को ऐसा ही लड़का दें,
कुछ मिनटों में,नंदू वापस कमरे में आता है!कर्मचारी को देखते हुए अंकल जी आप किस सोच में पड़े हुए हैं!लेट हो रहा है आपको मैं आपके क्वाटर तक छोड़ आऊंगा!
प्लेट में कुछ पकोड़े अभी भी रखे हुए थे!नंदू पकौड़े की तरफ इशारा करते हुए!इसमें से तो कुछ भी आपने नहीं खाया!मुझे बनाना नहीं आता ! इसलिए मैं होटल से लाया हूं!
चलिए कोई बात नहीं, आगे से मैं खुद से बनाने का कोशिश करूंगा!
कर्मचारी मुस्कुराते हुए,अरे ऐसी कोई बात नहीं है!लो तुम भी खाओ!
नंदू दे दो चार पकोड़े अपने हाथ में लेते हुए!छोटे बच्चे की तरह खाने लगता है!
Read more>>सपनों की उड़ान- भाग 9..
(लेखक रामू कुमार)
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