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यह कहानी ग्रामीण परिवेश पर आधारित है! जो की पूरी तरह काल्पनिक है !और इस कहानी में किसी भी जगह, व्यक्ति, वस्तुसे कोई लेना देना नहीं है, आप इस कहानी को सिर्फ मनोरंजन के रूप में पढ़ सकते हैं! धन्यवाद!!)
सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 1) मे आपका स्वागत है!
(जोरों की बारिश साथ में थोड़ी गर्जना लेकर इस नीले ग्रह पे धूम मचा रही थी! पंछियों का सुर ताल उड़ते तंबू के समान उथल-पुथल हो रहा था! सभी नाले नदी से होर लगाने पे तूली थी!)
एक ग्रामीण औरत
प्रभा- अपनी टूटी हुई झोपड़ी संभालने में व्यस्त थी!उसका बेटा नंदू अपनी मां को लाख समझाने के बाद भी,छप्पर से गिरने वाली धारा को हथेली पे लोके जा रहा था!एकाएक बाहर से नंदू के पिताजी कीआवाज नंदू को विचलित कर देता है!और वह दौड़ कर बांस के बने खटोले पे बैठकर किताब पढ़ने लगता है!मां को इशारा करते हुए बोलता है मां पिताजी को मत बताना कि मैं पानी से खेल रहा था!प्रभा- आंख तरेरति हुई आंगन की तरफ चल देती है! बाहर से आवाज आता है ,अरे भाग्यवान कोई दरवाजा खोलने में इतना समय लगाता है!प्रभा चुपचाप दरवाजा खोल देती हैं! हाथ से छाता लेती हुई जब आपको मालूम है बरसात का समय चल रहा है फिर भी इतना लेट से आते हैं! मालूम नहीं इतनी रात तक आपके पास कौन सा ग्राहक तंबाकू लेने के लिए बैठा रहता है!नंदू के पिताजी लंबी सांस लेते हुए - भाग्यवान तुम्हें क्या पता दुनिया में नशा का क्या महत्व है! इंसान अपना बहुमूल्य समय गवा कर नशा पत्ती के चक्कर में मिलो दूर पैदल चलता है!प्रभा-अपनी भंवे चढ़ाती हुई ठीक है , रहने दीजिए अपना नशा का प्रचार ,आप अपना कुर्ता खोल दीजिए भला छाता में भी किसी का कुर्ता गिला होता है क्या!सारा कुर्ता ऐसे भीगाए हैं जैसे नदी तैरकर आ रहे हैं !नंदू के पिताजीअचानक बोल पड़ते हैं,कुर्ता तो सुख जाएगा लेकिन तंबाकू गिला हो गया तो रोजी रोटी सब खत्म!इतना कहते हुए नंदू के पास जाकर बैठ जाते हैं! नंदू के तरफ देखते हुए नंदू कल जो पाठ याद करने के लिए दिया था याद हो गया!नंदू सहमे हुए आवाज में --जी पिताजी,चलो खाना खा लो फिर सुनते हैं!प्रभा- बाप बेटे को खाना परोसने लगती हैं!खाना पीना होने के बाद,नंदू को दिया हुआ पाठ सुनने के लिए बैठते हैं परंतु नंदू को आज पानी लोकने से फुर्सत कहां मिला,जो पाठ याद करेगा,रोज की तरह दो चार थप्पड़ खाकर सिसकी लेते हुए सो जाता है!
(धीरे-धीरे रात अपनी जवानी की ओर बढ़ती है !और काली आंचल में तमाम सजीवों को समेटने लगती है!)
इसी तरह इन लोगों का जीवन कटी पतंग की तरह इधर उधर लहराते हुए कट रहे थे! समय गुजरता जाता है ,नंदू दसवीं कक्षा पास कर लेता है!लेकिन रोज शाम का खुराक जारी रहता है!नंदू अब जवानी की दहलीज पर पांव रख चुका था!लेकिन कहते हैं ना कि वो जवानी जवानी नहीं, जिसमें कोई कहानी ना हो,लेकिन नंदू को अपनी कहानी बनाने के लिए समय कहां था!दिनभर स्कूल ,और रात को घर के विपदायों मे घीरा हुआ,अपने आप को कोसने के अलावा और कुछ भी नहीं था!ना कहीं घूमने जाना और ना ही कोई मनोरंजन का साधन,वो यैसे जिंदगी से अब उब चुका था!!??
(लेखक रामू कुमार)
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