सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सपनों की उड़ान- भाग 5/Sapno ki udaan hindi story

 
सपनों की उड़ान- भाग 5/Sapno ki udaan hindi story
सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 5) में आपका स्वागत है!

क्वार्टर के अगल-बगल काफी पेड़ पौधे लगे थे!जो कि बारिश छूटने के बाद भी काफी समय तक टपकटी रहती थी!चांद खिला हुआ था,बारिश की बूंदे शीशे के समान चमक रही थी!हल्की हल्की हवा पेड़ों को ताजगी प्रदान कर रही थी,
तभी एका एक दरवाजा खुलता है,कर्मचारी सीखा को डाटते हुए दरवाजा खोलने में कोई इतना समय लगता है! नंदू को अचानक अपने पिता जी का याद आ जाता है! वो भी मम्मी को इसी तरह डाटते थे!
सीखा अपने बाबू जी के हाथ से छाता लेती हुई तपाक से पूछ  बैठती है यह कौन है!
कर्मचारी बैगर जवाब दिये  हुए, बरामदे में लगे कील मे  अपना कुर्ता टांगनेन लगते हैं!शिखा जवाब न पाकर अपनी नाक सिकुड़ाती हुई चली जाती है!नंदू बाहर दरवाजे को पकड़कर  अछोप की तरह खड़ा रहता है!
कर्मचारी--नंदू वहां खड़े क्यों हो , वो दरवाजा गिरने वाला नहीं है आओ बैठो यहां!नंदू हल्के मुस्कुराहट के साथ, बरामदे में लगे कुर्सी पर बैठ जाता है!
कर्मचारी--शिखा वो शिखा....,
शिखा--जी बाबू जी..,
कर्मचारी -- थोड़ी सी चाय बना लो,
कुछ ही छनो मे स्टॉप की आवाज ,सारे क्वार्टर में बैगर चैनल वाली रेडियो  जैसे गूंजने लगता है!
शिखा एक ट्रे मे दो कप चाय, और कुछ टूटी-फूटी बिस्कुट लेकर आती है!कर्मचारी शिखा के हाथ से ट्रे लेते  हुए ,थोड़ा पानी ले आओ, शिखा पानी ले कर आती है, और आहिस्ते से रख कर
 चली जाती है!
कर्मचारी --एक गलास नंदू को देते हुए लो पहले पानी पियो,
नंदू पानी पीता है, लेकिन उसके हलफ से पानी नीचे नहीं उतरता है , और जोर से सरक जाता है ,नंदू खांसने लगता है!
कर्मचारी--ऐसा करो पहले तुम कपड़े बदल लो तुम्हें सर्दी असर कर रहा है!कर्मचारी उठकर अंदर से कुछ कपड़े लेकर आता है और नंदू को देते हुए लो इसे पहन लो!नंदू कभी भी इतने बड़े  कुर्ता पैजामा सपने में भी नहीं पहना था!
कर्मचारी--पहन लो यह मेरे कपड़े हैं,बड़ा तो होगा ही , रात हो
 गया है ,कोई नहीं देखेगा,नंदू कपड़े बदल कर बिल्कुल सर्कस का बौना जोकर लग रहा था!फिर दोनों चाय पीने लगता है;
कर्मचारी--अच्छा बताओ नंदू तुम्हें कैसा काम चाहिए?
नंदू चाय का कप नीचे रखते हुए , मैं कोई भी काम कर लूंगा,
कर्मचारी-- चलो ठीक है कल सुबह तुम्हें काम खोज देंगे,
बारिश बूंदाबांदी हो रही थी,रसोई से खुशबूदार सब्जी की सुगंध नंदू को विचलित कर रहा था!सामने बिजली के खंभों पर एक जोरदार पटाखा फूटता है!और क्वार्टर की बिजली गुल हो जाती है!कर्मचारी बड़ बड़ाते हुए उठता है, और बरामदे में टंगे लैंप को जलाने लगता है,लैंप का शीशा साफ न होने के कारण रोशनी और अंधेरों के बीच युद्ध छिड़ जाता है!लेकिन दोनों में से किसी को विजय प्राप्ति करना,नामुमकिन हो रहा था!रसोई से तमाम अंधकारों को चीरती हुई ,शिखा की आवाज आती है, खाना तैयार है ले आउं?
कर्मचारी--बिजली आना तो मुश्किल है ले आओ,
शिखा खाना लेकर आती है! खाने में रोटी सब्जी अचार और दही भी शामिल थे!कर्मचारी और नंदू दोनो खाना खाने में व्यस्त हो जाते हैं!

                  Read more>>सपनों की उड़ान- भाग 6..

                                                     ( लेखक रामू कुमार)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे

  उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे ! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे !! इनकर सतरंगी रंग ! भरे दिल में उमंग !! नापे धरती से आसमां की दूरी रे ! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!! इनकर काले पीले मूंछ ! लंबे सीधे-साधे पूंछ !! कभी दाएं कभी बाएं देखो मुड़ी रे ! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!! रंग रूप है निराले ! हवा इनको संभाले !! कभी कटे कभी छंटे कहीं जुड़ी रे ! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!! संघ लेके उड़े धागे ! कभी पीछे कभी आगे !! धागा ऐसे काटे जैसे कोई छुड़ी रे ! गिरी गिरी रे पतंग गिरी गिरी रे..!! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!! गिरी गिरी रे पतंग गिरी गिरी रे..!!                                                ( लेखक रामू कुमार)

सपनों की उड़ान- भाग 1/Sapno ki udaan hindi story

  ( यह कहानी ग्रामीण परिवेश पर आधारित  है! जो की पूरी तरह काल्पनिक है !और इस कहानी में किसी भी जगह, व्यक्ति, वस्तु से कोई लेना देना नहीं है, आप इस कहानी को सिर्फ मनोरंजन के रूप में पढ़ सकते हैं! धन्यवाद!! ) सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 1) मे आपका स्वागत है! (जोरों की बारिश साथ में थोड़ी गर्जना लेकर इस नीले ग्रह पे धूम मचा रही थी!  पंछियों का सुर ताल उड़ते तंबू के समान उथल-पुथल हो रहा था! सभी नाले नदी से होर लगाने पे तूली थी!) एक ग्रामीण औरत प्रभा- अपनी टूटी हुई झोपड़ी संभालने में व्यस्त थी!उसका बेटा नंदू अपनी मां को लाख समझाने के बाद भी,छप्पर से गिरने वाली धारा को हथेली पे लोके जा रहा था!एकाएक बाहर से नंदू के पिताजी कीआवाज नंदू को विचलित कर देता है!और वह दौड़ कर बांस के बने खटोले पे बैठकर किताब पढ़ने लगता है!मां को इशारा करते हुए बोलता है मां पिताजी को मत बताना कि मैं पानी से खेल रहा था!प्रभा- आंख तरेरति हुई आंगन की तरफ चल देती है! बाहर से आवाज आता है ,अरे भाग्यवान कोई दरवाजा खोलने में इतना समय लगाता है!प्रभा चुपचाप दरवाजा खोल देती  हैं!  हाथ से छाता लेती हुई जब आपको मालूम है बरसात

शंकर महिमा (चौपाई छंद)

डम डम डम डम डमरू बाजे ! भूत बेताल मिलजुल साजे !! गले बिराजे विषधर माला ! तन पर पहने मृग के छाला !! बैल बसहबा बने सवारी ! हरे विपद सब संकट भारी !! शीश जटा से निकली गंगा ! शीतल करती उनके अंगा !! नीलकंठ है नाम तुम्हारे! सब का जीवन तुही सम्हारे !! जय जय जय जय शंकर दानी ! महिमा तोहर देव बखानी !!                                      !!  लेखक रामू कुमार !!