सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 3) में आपका स्वागत है!
सूरज अपने साथ तमाम उजाला लेकर अपने घर की ओर लौटने लगते हैं! डिब्बे की सारी बत्तियां जला दी जाती है!सभी खिड़कियां बंद कर दिये जाते है!धीरे-धीरे सभी के चेहरे से थकानी लौ एक-एक करके बुझने लगता है!और वहां शांति का माहौल बन जाता है!
नंदू को प्यास इतना बेचैन कर देता है, कि वो सामने बैठी महिला से एकाएक पानी मांग बैठटा है!
महिला एक नजर ऊपर से नीचे तक देखती है, और फिर पानी का बोतल बढ़ा देती हैं!नंदू इतना प्यासा रहता है, कि सारा पानी मिनटों में सुड़क जाता है!और बोतल बढ़ाते हुए बोलता है आप ने आज मेरा जान बचा दिया!गाड़ी पहले के अपेक्षा काफी रफ्तार से बढ़ने लगती है!नंदू वही बैठे-बैठे झपकने लगता है!झपकते झपकते गहरी नींद में सो जाता है!सामने बैठी महिला एक टक लगाकर उस बेसुधा पड़े नंदू को निहारने लगती हैं!
कुछ समय गुजरने के बाद,नंदू को जगाती है और पूछती हैं,
बेटा, कहां जाना है!नंदू कोई उत्तर नहीं देता है!
फिर महिला पूछती है,तुम्हारे पास कुछ खाने पीने का चीज है?
नंदू अपना गर्दन हीलाते हुए-नहीं आंटी कुछ भी नहीं है !
महिला-तो फिर कहां जा रहे हो, घर से भाग कर आए हो क्या?
नंदू,, जैसे इतना शब्द सुनता है, वैसे उसके आंखों से आंसू, गाल पर बक्र रेखा खींचते हुए नीचे टपक जाता है!
महिला-अब बगैर सवाल जबाब के अपने बैग से कुछ नमकीन और एक बिस्कुट का पैकेट निकाल कर, उसके तरफ बढ़ा देती है!
नंदू खाने के चीज को ऐसे लपकता है, जैसे कोई भूखा बंदर हो!
बिस्कुट नमकीन खत्म करने के बाद , शर्ट में अपना मुंह पोछते हुए -आंटी जी ,यह गाड़ी कहां तक जाएगी,महिला अपनी आंचल में आंसू पोछती हुई बोलती हैं, दार्जिलिंग तक ,वहीं इसका लास्ट स्टॉपेज है!
नंदू महिला से पूछता है ,,आंटी आपको कहां तक जाना है!
महिला-बस एक स्टेशन बाद हमें उतर जाना है!क्या तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगे, मैं तुम्हें अपने घर वापस भेज दूंगी!
नंदू- नहीं आंटी मुझे फिर से कैद नहीं होना है !
बस कृपा करके मुझे छोड़ दीजिए मैं आपके घर नहीं चल सकता,
महिला को, नंदू का भोलापन अंदर ही अंदर झकझोर दिया था!
वह ममता की चारदीवारी में अपने आप को, कैद कर चुकी थी!
महिला अपनी घड़ी की तरफ देखती हुई, उठ कर खड़ी हो जाती है!और अपने बैग से कुछ बिस्कुट का पैकेट निकालकर, नंदू के हथेली पर रखती हुई, निकास द्वार की तरफ बढ़ने लगती हैं!
शायद उनका स्टेशन आने वाला था!कुछ ही क्षणों में स्टेशन पे गाड़ी रुकीऔर वो वहां से उतर गई,खिड़की से नंदू के तरफ देखती हुई धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, लेकिन आंखें नंदू वाले डब्वे की योर टिकी थी!कुछ ही क्षणों में गाड़ी भोपू देकर सरकने लगती हैं!और धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ लेती है,
नंदू अपने आपको अब काफी अकेला महसूस कर रहा था!
पूरे 36 घंटे गुजरने के बाद ,गाड़ी अपनी लास्ट स्टॉपेज तक पहुंचती है!सभी यात्री एक-एक करके उतर जाते है! लेकिन नंदू भूखे प्यासे , गहरी नींद में खोया रहता है!गाड़ी को रुके हुए लगभग आधा घंटा हो चुका था!परंतु उसको कुछ भी खबर नहीं गाड़ी रुकी है या चल रही है!
कुछ समय बाद , एक बुजुर्ग कर्मचारी अपने हाथ में झाड़ू लेकर डब्बे में प्रवेश करता है!नंदू को पड़े देखकर एकाएक चौक जाता है!उसे लगता है मानो कोई लास पड़ी है,कुछ समय के लिए वो वही अनिश्चित दशा में खड़ा रहता है!अचानक नंदू करवट बदलता है!कर्मचारी धीरे-धीरे उसके पास जाता है, और फिर उसको-
डांट कर बोलता है,इतनी कम उम्र में पीना जरूरी था क्या ? नंदू झटपट उठ कर बैठ जाता है,और सीहरे हुये आवाज में बोलता है,अंकल मैं कुछ नहीं पिया हूं,
कर्मचारी अपने दांत पीसते हुए-सब शराबी यही बोलता है !
उठ नीचे उतर सफाई करने दें,नंदू उतर जाता है,
लेकिन, उसे अभी तक ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे वो गाड़ी में ही हील डोल रहा है!किसी तरह वह अपने आप को संभालते हुए बैठ जाता है, इधर उधर स्टेशन को निहारने लगता है!जैसे किसी तालाब की मछली को कोई समुंदर में छोड़ दिया हो!काफी समय तक वह इसी दशा में बैठा रहता है!
Read more>>सपनों की उड़ान- भाग 4..
( लेखक रामू कुमार)
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