भरी मेहफिल मे जाकरके तुम्हारा जिक्र करते हैं
अपनी हर गजल और गीत में तुम्हें गुनगुनाता हूं
तुम से हर जुड़ी वो चीज अब पवित्र लगते हैं
होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं..
खुद को आईने में जब भी देखता हूं कभी
उस आईने में भी तुम्हारा चित्र रहते हैं
होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं..
तुम्हारी हर पुरानी खत को मैं रोज पढ़ता हूं
उन खत में तेरी हाथों का इत्र रहते हैं
होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं..
जब तन्हाई की जंजीर मेरे ओर बढ़ता है
तेरा नाम लेकर हम वहां बेफिक्र रहते हैं
होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं..
Writer Ramu kumar
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