हुजूर यहां अब गुजारा नहीं, आशियाने में चांद सितारा नहीं, सूरज भी अकेला जलता रहा उनका भी तो कोई सहारा नहीं, हुजूर यहां अब गुजारा नहीं.. देखे हैं जो ख्वाबें हमने सदा वैसा यहां कुछ ना नजारा नहीं, हर दिल अकेला मचलता रहा बादलों की तरह तो आवारा नहीं, हुजूर यहां अब गुजारा नहीं.. जुगनू भी टीमक कर थक सी गई फिजाओं ने उनको संवारा नहीं, झूठे हो रहे हैं वादे यहां मुझे ऐसी लेहजा गवारा नहीं, हुजूर यहां अब गुजारा नहीं..
मोहब्बत का सौदा जारी हुआ
मजहब का तो ठिकाना नहीं,
बन रहे हैं सियासत रोज नया
खुदा का कोई दीवाना नहीं,
हुजूर यहां अब ठिकाना नहीं
आशियाने में चांद सितारा नहीं,
(लेखक रामू कुमार)
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