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जनवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यादें

 होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं भरी मेहफिल मे जाकरके तुम्हारा जिक्र करते हैं अपनी हर गजल और गीत में तुम्हें गुनगुनाता हूं तुम से हर जुड़ी वो  चीज अब पवित्र लगते हैं                  होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं.. खुद को आईने में जब भी देखता हूं कभी उस आईने में भी तुम्हारा चित्र रहते हैं                  होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं.. तुम्हारी हर पुरानी खत को मैं रोज पढ़ता हूं उन खत में तेरी हाथों का इत्र रहते हैं                  होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं.. जब तन्हाई की जंजीर मेरे ओर बढ़ता है तेरा नाम लेकर हम वहां बेफिक्र रहते हैं                  होकर दूर हम तुमसे तुम्हारा फिक्र करते हैं.. Writer Ramu kumar

अकेलापन

दीया अकेला जल रहा,कमरा खाली खाली है! खिड़की के पल्ले झुल रहे,जैसे वो पेड़ के डाली है! मधुशाला में मधु छिड़कने  वाला देखो जाली है!! बोतल का ढक्कन लगा हुआ पर सारा बोतल खाली है!            दीया अकेला जल रहा.... फूल सींचने वाला माली कर्म हीन अनारी है! गुलशन का तो पता नहीं बस काटो का फुलवारी है! अंबर से समंदर तक राते काली-काली है! पंछी का तो पता नहीं बने भौतिक हरियाली है!              दीया अकेला जल रहा.... चेतना अधीर हुए अब झूठा प्रेम पुजारी है! सत्य अहिंसा  फीका पड़ा झूठ का पलड़ा भारी है! दीया अकेला जल रहा कमरा खाली खाली है! खिड़की के पल्ले झूल रहे जैसे वो पेड़ के डाली है! Writer Ramu kumar

तन्हा सफर

हुजूर यहां अब गुजारा नहीं,                          आशियाने में चांद सितारा नहीं,                              सूरज भी अकेला जलता रहा                                उनका भी तो कोई सहारा नहीं,                                                               हुजूर यहां अब गुजारा नहीं.. देखे हैं जो ख्वाबें हमने सदा                                  वैसा यहां कुछ ना नजारा नहीं,                                हर दिल अकेला मचलता रहा      ...

बदलते जमाना

देख जमाना बदल रहा है! उड़ते पंछी संभल रहा है! भौतिक रंग चढ़ गए सब पर प्रकृति की भी मचल रहा है!                   देख जमाना बदल रहा है! नदी सिमटकर नाला बन गई! नरम रुई अब भाला बन गई! नए रोग अब पनप रहा है देख जमाना बदल रहा है!                   देख जमाना बदल रहा है! संस्कृति भी हुई बेहोश! पड़ा जो उनपे भौतिक ओश! पुरानी चीजें कलप रहा है! देख जमाना बदल रहा है!                  देख जमाना बदल रहा है! उथल-पुथल है जीवन सबका! अमन चैन लुट गए हैं कब का! साधु संत भी सनक रहा है! देख जमाना बदल रहा है!                 देख जमाना बदल रहा है गुलशन में सुगंध कहां है! प्रकृति में आनंद कहां है! सत्य अहिंसा दबक रहा है देख जमाना बदल रहा है!             देख जमाना बदल रहा है..देख जमाना बदल रहा है!         ( लेखक रामू कुमार)

1st love

पीके इश्के खुराख जवां हो गए! नर्म विस्तर को छोड़ कहां सो गए! गम का दरिया भी धीरे से सूख गया! यैसा लगता जैसे जहां हो गए! Writer Ramu kumar)