दीया अकेला जल रहा,कमरा खाली खाली है!
खिड़की के पल्ले झुल रहे,जैसे वो पेड़ के डाली है!
मधुशाला में मधु छिड़कने वाला देखो जाली है!!
बोतल का ढक्कन लगा हुआ पर सारा बोतल खाली है!
दीया अकेला जल रहा....
फूल सींचने वाला माली कर्म हीन अनारी है!
गुलशन का तो पता नहीं बस काटो का फुलवारी है!
अंबर से समंदर तक राते काली-काली है!
पंछी का तो पता नहीं बने भौतिक हरियाली है!
दीया अकेला जल रहा....
चेतना अधीर हुए अब झूठा प्रेम पुजारी है!
सत्य अहिंसा फीका पड़ा झूठ का पलड़ा भारी है!
दीया अकेला जल रहा कमरा खाली खाली है!
खिड़की के पल्ले झूल रहे जैसे वो पेड़ के डाली है!
Writer Ramu kumar
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