सोई कलियां पंख पसारे
दिवाकर के प्रकाश सहारे!!
छोड़ती वाष्पन ऊंची पहाड़े
लुटे प्राणी अन्यान्य बहारें!!
ए कपोत की लघु झुंडे
अंबर कुचले जैसे गुंडे!!
प्रज्वलित हुई है हवन कुंडे
शोर मचाए छोटे मुंडे!!
अंगड़ाई लेती चितवन मोर
मेमने लगाते दौड़कर होर!!
धूल उड़ा ए चारों ओर
पेड़ मचाई उत्तम शोर!!
बुड्ढी काकी दौड़ कर आई
साथ में लाई दियासलाई!!
दूध में थोड़ी पानी मिलाई. अंगीठी जलाकर चाय बनाई!!
फिर बनाई उसने रोटी
रोटी उनकी मोटी मोटी!!
पहनी उसने ऊनी कोटी
टिप टिप करती घर की टोटी!
!!!!!!! लेखक रामू कुमार !!!!!
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