सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

काली कोयल

  इन काले कोयल को देखो काली होकर मीठी स्वर परोसे आत्मा में नया ताजगी झरोखे दिल व्याकुल है मीठी तान के भरोसे                बाग  बगियों के नाज है ये                हवाऐ झरोखे की राग है ये                वातावरण की ताज है ऐ                कठोर दिल का मोहताज है ये अंध्यारो का उजाला है वृक्षों का रखवाला है आदतों से निराला है स्वरों का प्रयोगशाला हैं                फल फूलों का अधिकारी                 समाजों का पुजारी                 कौवा का विनाशकारी                 पक्षियों में गुणकारी  आमों की डालियों पर बच्चों की गालियों पर सैनिकों की कुर्बानियों पर अनेकों स्वर बरसाती है ..!! इन काले कोयल को देखो भारत देश का धरोहर मीठी तान से मनोहर अपने चोच से कठोहर मीठे फलों ...

हिफाजत

भारत मां के आंचल पर ना लगे कभी दाग ए वतन के रखवाले खुद को बना लो आग बड़े बुजुर्गों की माथे से कभी ना गिरे पाग हर किसी के दिल में छलके बस ऐसी अनुराग             ए दोस्त यही है तुमसे अर्जी              मेरे सीमा लदाख पर दुश्मनों की ना मर्जी             चीन और पाकिस्तान को लगाएंगे कसके सर्दी               घूसखोर पुलिस वालों को उतारेंगे वर्दी ए जवानों खुद को मत जलाना तुम क्रोध में क्रोध आने पर सो जाना भारत मां की गोद में अपने सीमा में आने वालों को मारो जोश मे ऐसे ध्वस्त करो उसको कि आए कभी ना होश में               नए जवानों फोर डालो अन्याय की भांडा                जो हमारे देश को कर रहे हैं गंदा                बनो काफिरो का तुम मौत का फंदा                 मेरे सीमा  में लहरेगा मेरा तिरंगा झंडा हे माँ बारंबार...

फर्ज

आओ मिलकर गान करें हम भक्ति रस का पान करें हम बेसहारा दिया का जान बने हम तिरंगा को सलाम करें हम           रास्ते पर पत्थर को देखो           कर्म हमारा उठाकर फेंको           मगर इंसान बना हैवान           ईश्वर को कहते बेईमान भाई बना भाई का हत्यारा धर्म छोड़कर अधर्म का प्यारा पैसा वाले लगते न्यारा गरीब के चेहरे पर बजते  बारह           अच्छे काम कर के मरना             हर किसी के दिल में रहना             दुखों को हमेशा सहना             ऐसा करना पछताना वरना हरियाली को रखना बरकरार मित्रों से ना करना टकरार ऐसा हमदर्द बन मेरे यार मरने पर भी फूल चढ़े हजार              अपने पर गुमान ना कर.                                              ...

शीतल नदी

दो शब्दों की खोज में मैं निकला नदी किनारे  चार ब्राह्मफाश जाल लिए खड़े हैं मछुआरे बगुलाो की साम्राज्य उतरे तोड़ते हुए कतारें दोस्त शब्द की बजाय सर पर लद गए शब्द हजारे               नीर कि शीतलताओं से निकली एक आवाजें                 मैं तो शीतल नीर हूं और तुम हो प्यासे                आभास करके आज तुम पहुंचे हो मेरे पासे                 शीतल हो जाओ ए मेरे प्रीतम बगैर पढ़े नवाजे धो लो सारे बदन तुम आ कर मेरे पास मेरी कल कल करती गीत का बनो राग मुझे तुम्हारे मनोवृति पर है बड़ी नाज आज शीतल हो जाओ वरना नहाओ गे बनकर लाश                मैं नहीं छोड़ती कोई व्यंग बाण                 मेरी शीतलता ओ से मुझे पहचान                 तुम आज आकर कर लो स्नान                 नहीं तो आओगे पर...

प्रातः काल

सोई कलियां पंख पसारे दिवाकर के प्रकाश सहारे!! छोड़ती वाष्पन ऊंची पहाड़े लुटे प्राणी अन्यान्य बहारें!!              ए कपोत की लघु झुंडे               अंबर कुचले जैसे गुंडे!!               प्रज्वलित हुई है हवन कुंडे               शोर मचाए छोटे मुंडे!! अंगड़ाई लेती चितवन मोर मेमने लगाते दौड़कर होर!! धूल उड़ा ए चारों ओर पेड़  मचाई उत्तम शोर!!               बुड्ढी काकी दौड़ कर आई                साथ में लाई दियासलाई!!                दूध में थोड़ी पानी मिलाई.                                                 अंगीठी जलाकर चाय बनाई!! फिर बनाई उसने रोटी  रोटी उनकी मोटी मोटी!! पहनी उसने ऊनी कोटी टिप टिप करती घर की टो...