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सांयकाल

🌆
सायं काल में उत्पन्न हुई
 
शीतल ओश की बुंदे ||
आकुल व्याकुल बीछड़े प्राणी
अपने अवाश को ढुंढे ||
         झींगुर ने चारो दिशा मे
         झिंपी झिंपी राग बजाई ||
         वाट बटोही औरत मर्द को
         पाँव मे पायल पहनाई ||
         बाग  बगीयो मे चंचल कोकील
          मीठी शुर मे धूम मचाई ||
नजर दौराया चारु ओर
प्रथम फुआशा छाया हुआ था ||
अम्बर मे देखा काली कोयल
जो शाम मे गाया हुआ था ||
छोटे बडे बुजुर्गों ने भी
ऊनी कपडा पाया हुआ था||
           गाँव लौट कर मैने देखा
           कुछ बच्चे कर रहे पढा़ई ||
           बुढी काकी पास बैढ कर
           दुर्गंधीत बींडी को जलाई
            एक बच्चे ने दिया बुझा कर
            सब बच्चों से कीया लडा़ई ||
जुगनू आ कर हरे पेंड पर
अपनी अपनी डेरा डाली ||
चारो दिशा को घेर लीआ है
घटा सी राते काली काली ||
हर आँगन मे टनमन ढनमन
सोर मचाई देखो थाली |
         

                      ➡🖋  लेखक.  रामू कुमार__🖊

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