सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 15) में आपका स्वागत है!
!सुबह का समय!
मीठी हवा पेड़ो को सहलाकर कर जगा रही थी! सूर्य की
रोशनी ओस के बुंदो को मनी रूप दे रहा था!
नंदू दरवाजे की तरफ देखते हुए बोलता है, अब हमें चलना चाहिए!
शिखा- नाश्ता कर लीजिए फिर चले जाइएगा!
नंदू- चाय पीते पीते तो सुबह हो गई', यदि नाश्ता करेंगे तो ना जाने कई दिन लगेंगे!
दोनों जोर जोर से हंसने लगते हैं!हंसी की आवाज से सारा घर गूंज उठता है!इसी हंसी का सहारा लेते हुए नंदू अपने कमरे के तरफ चल पड़ता है!पूरी रात जागने की वजह से नींद नंदू को अकेले देखते ही दबोच लेता है!और उसे नींद महल की ओर लेकर रवाना हो जाता है!कुछ समय बीतने के बाद शिखा दौड़ती भागती नंदू के यहां पहुंचती है ,और जोर-जोर से दरवाजा खटखटाने लगती है !नंदू दरवाजा खोलता है!शिखा काफी घबराई हुई थी और शिसक रही थी!नंदू आश्चर्यचकित होकर पूछता है ,शिखा क्या हुआ क्यों रो रही हो?नंदू की आवाज सुनते ही सीखा और जोर जोर से रोने लगती है!नंदू पूरी तरह घबरा जाता है ,और सिखा कि हाथ पकड़ते हुए बोलो सिखा क्या हुआ?
सीखा हिचकियां लेती हुई बोलती है!पिताजी का एक्सीडेंट हो गया है! ये शब्द सुनते ही नंदू का कलेजा कांप जाता है!
सारा शरीर मिनटों में पसीना से भीग जाता है!और वह धड़ से जमीन पर बैठ जाता है!सीखा भी सिसकियां लेती हुई वहीं बैठ जाती है!
नंदू- गला भरे आवाज में पूछता है अभी वह कहां है?
शिखा- एम्बुलेंस आया था, कमरा पर छोड़कर चला गया!
अब वो नहीं चल सकते ,इतनी बात कहते कहते अचानक से बेहोश होकर गिर जाती है! नंदू दौड़कर पानी ले आता है, और छीटा मारता है!सीखा होश में आती है,फिर दोनों वहां से सीखा के कमरे पर आता है! नंदू देखता है पूरे शरीर में पट्टी बंधा है!एक पांव हमेशा के लिए खो चुके थे !उसपे प्लास्टर चढ़ा हुआ था!
हंसते खेलते जीवन के पन्नों पर, किसी ने बड़ी बेरहमी से स्याही पलट दिया !और देखते ही देखते, वह स्याही सफेद पन्ने को अपने आगोश में समेट लिया,और वह पन्ना किसी काम का नहीं रहा!
दोनों हंस आंसुओं की सागर में तैरने लगा!जो भी जमा पूंजी था धीरे-धीरे खत्म हो गया! अंत में सहारा देने वाला दीपक बेसहारा छोड़ कर हमेशा के लिए बुझ गया! अंधेरे में विषाद दिन प्रतिदिन अपना विकराल रूप दिखाता रहा! नंदू सीखा के दुखों को समेटने में इतना व्यस्त हो गया, कि वह भूल गया कि मैं किसी कंपनी का एक मामूली सा नौकर हूं! हर एक सप्ताह में चार दिन छुट्टी ही रहता था!
किसी भी कंपनी को आपके दुख, समस्या ,आर्थिक कमजोरी, इन सब विषयों पर चिंतन करने से क्या फायदा!उसे तो सिर्फ अपना लाभ हानि से मतलब है! अंततोगत्वा नंदू को कंपनी से बर्खास्त कर दिया गया! शिखा की आस जो नंदू पर टिकी थी, वह भी अब धुंधला नजर आने लगा!एक रोटी के लिए भी घंटों सोचना पड़ता था! किसी दिन रोटी नसीब होता तो किसी दिन वह भी नहीं!
अंत में नंदू को अपना घर मां और पिताजी की याद आई!
एक कहावत है-- चिड़िया चाहे उड़े आकाश,फिर करे धरती की आस!शिखा को साथ ले कर नंदू अपने गांव के लिए रवाना हुआ! लेकिन विधाता को यह भी मंजूर नहीं! कमरे से चौराहे तक अभी पहुंचा नहीं ,तब तक कमरे का मालिक पीछे से नंदू का हाथ पकड़ लेता है! और बुलंद आवाज में पूछता है कहां जा रहे हो किसी ने बताया कि तुम घर जा रहे हो? नंदू उदासी की चादर संभालते हुए बोलता है जी हां ,और मेरे पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं है! कमरे का मालिक गरजते हुए और दो माह से जो किराया नहीं दिया है वह कौन देगा? नंदू अपने पैकेट से कलम निकालता है, और बिजली के खंभे पर एक पोस्टर लगा होता है!झट से उसी को उतार लेता है!और अपना घर का पत्ता लिख कर उसके हथेली पर रख देता है, और बोलता है कुछ दिनों में मैं आकर आपका किराया दे दूंगा, और यदि नहीं आ पाया तो आप इस पत्ते पर आकर चार गुना किराया ले जाइएगा! रूम मालिक अपना दांत निकाल कर हंसने लगता है!
और बोलता है- इस दुनिया में सबसे बुद्धू हम हीं दिखते हैं क्या?वह कागज का टुकड़ा नंदू के हथेली पर रखते हुए, ये नौटंकी किसी और के सामने करना लाओ पहले किराया जमा करो!
नंदू एक नजर सीखा के तरफ देखता है,और फिर आसमान को निहारने लगता है!शिखा नंदू को इस व्यथा में देखकर विचलित हो जाती है!और वह झट से अपने कान की बाली निकालकर रूम मालिक के हथेली पर रख देती है!और नंदू की कलाई पकड़ती हुई बोलती है, चलिए,यह दरिंदों का शहर है!इन लोगों का बस चले तो मुर्दों का कफन तक ना छोड़े!इतना कहती हुई वहां से चल देती है! रूम मालिक की चेतना अंदर ही अंदर उससे लाखों सवाल जवाब करने लगता है! और वह काफी समय तक उन दोनों हंस की जोड़ी को जाते हुए देखते रहता है!
फिर नीचे झुक कर नंदू द्वारा फेंके गए उन पत्ते वाली कागज को उठाता है, और अपने होठों से चुम कर पैकेट में डाल लेता है!और ईश्वर से क्षमा मांगते हुए अपने घर के तरफ लौट जाता है!
नंदू और सीखा दोनों अपने जीवन दशा को एक दूसरे से साझा करते करते अपने गांव के बाजार पे पहुंचते हैं!
(नंदू के गांव का दृश्य)
सारे पगडंडी पक्के सड़कों का रूप ले चुका था! छोटी दुकानें बड़ी हो चुकी थी!झोपड़ी और छप्पर कहीं देखने को नहीं मिल रहा था!नंदू को तो रास्ते भी समझ नहीं आ रहे थे, कि किस रास्ते से अपने घर जाऊं!सामने एक चाय की दुकान दिखाई देती है! दोनों वहीं जाकर सीमेंट से बने चबूतरे पर बैठ जाता है!
चाय पीने की जिज्ञासा तो थी, लेकिन पैकेट खाली होने की वजह से जिज्ञासा को अंदर ही दबाना पड़ता है!कुछ देर के बाद एक बूढ़ी औरत सिखा के समीप आती है! बोलती है बेटी चाय पीना है?शिखा अपनी गर्दन हिलाती हुई ,नकारात्मक उत्तर पेश करती है!नंदू बड़े ध्यान से उस औरत को देखता है ,क्योंकि उसकी आवाज उसकी मां से मिलती जुलती थी!थोड़ा देर बैठता है, लेकिन उसका अंतरात्मा उसे चैन से बैठने नहीं देता है!उसके मन में बार-बार वही आवाज गूंजता है, सवाल करता है!
यह मेरी मां है क्या?
अंत में उसे नहीं रहा जाता है! और वह उठकर उस औरत से अपने पिताजी के नाम लेते हुए पूछता है, उनके घर जाने के लिए कौनसी रास्ता जाएगी! इतना सुनते ही औरत नंदू को ऊपर से नीचे तक निहारने लगती है!और फिर पूछती है वे आपका कौन है?
नंदू- वह मेरे पिताजी हैं!
जैसे ही यह शब्द सुनती है,वैसे ही उनके आंखों से आंसुओं की सागर जमीन को धोने लगती है!और नंदू को अपने कलेजे से लगा कर जोर-जोर से रोने लगती है!देखते ही देखते वहां भीड़ लग जाता है, आखिर यह क्या हो रहा है ,किसी के समझ में कुछ आ नहीं रहा था!फिर जोर-जोर से बोलती है,देखो मेरा बेटा आ गया! मेरे आंखों का तारा आ गया! फिर उसके खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा था!,नंदू वहां खड़े सभी व्यक्ति को पैर छूता है!दुकान उसी वक्त बंद हो जाती हैं, तीनों घर के तरफ चल पड़तें है! सारा पर्यावरण रंग बदल लिया था! लेकिन नंदू के घर पे अभी कुछ भी नहीं बदला था!वही झोपड़ी ,वही साइकिल, वही आँगन !
प्रभा- नंदू से पूछती है यह लड़की कौन है?
नंदू- शिखा की जीवनी मां के सामने पेश करता है!
प्रभा- शिखा को अपने गले से लगा लेती हैं!
नंदू- मां पिताजी दिखाई नहीं दे रहे हैं?
प्रभा- हां वह बड़े बाजार गए हैं तंबाकू लेने!साइकिल खराब है जिसके वजह से उनको आने जाने में समय लग जाता है, लेकिन अब आते ही होंगे!चलो तुम लोग पहले खाना खाओ!दोनों नहा धोकर खाना खाने बैठता है!इसी बीच नंदू के पिताजी भी आ जाते हैं!
नंदू अपने पिताजी का पैर छूता है!साथ में सीखा भी पैर छूती है!नंदू के पिताजी नंदू को देखकर फुले नहीं समाते, लपक कर अपने सीने से लगा लेते हैं!
फिर हंसते हुए बोलते हैं- मेरे लिए बहू लेने गया था?सभी के चेहरे पर हंसी नुमा खुशी के बादल जोर-जोर से गरजता है!
घर के बुझते हुए दिया फिर से जल उठता है!
नंदू को बिजली के काम का बढ़िया ज्ञान था जिसके वजह से उसे काम पकड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा, और वह धीरे-धीरे अच्छा पैसा कमाने लगा!
इसी बीच दार्जिलिंग से दो आदमी आए- एक वही रूम मालिक और दूसरा एक सरकारी ऑफिसर , नंदू तो रूम मालिक को देखते ही चौक गया!लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान देखकर कोई गंभीर समस्या नहीं लग रहा था! नंदू पास में जाकर झट से झुक कर प्रणाम किया ! और पूछता है अंकल जी आपको यहां कैसे आना हुआ?मेरे घर का पता आपको कैसे मालूम? रूम मालिक मुस्कुराते हुए अपने जेब से वही कागज का टुकड़ा निकालता है जो नंदू वहां से आते वक्त वहीं पर फेक कर आया था! वही दिखाते हुए इसी के सहारे !
नंदू- आपके रूम के किराया के बदले तो आपको दो सोने की बाली दे दिए गए थे! क्या उस बाली से भी महंगा आपका रूम किराया है!
रूम मालिक- नंदू के सामने दोनों हाथ जोड़ते हुए मुझे और शर्मिंदा ना करो, मैंने जो गलती की है जिंदगी भर उसका पछतावा रहेगा !
अच्छा बताओ शिखा कहां है?
नंदू- उससे क्या काम है?
रूम मालिक- सरकारी ऑफिसर की तरफ इशारा करते हुए मेरा नहीं उनका काम है!
नंदू आश्चर्यचकित होकर सरकारी ऑफिसर से पूछता है ! साहब बताइए शिखा से क्या काम है, सरकारी ऑफीसर अपने बैग से कुछ फॉम निकालता है!नंदू को दिखाते हुए शिखा के कुछ पैसे हैं, जो उसके पिताजी उसके लिए जमा किए थे, इसका समय पूरा हो गया है, वही लेकर आया हूं ,जल्दी से सिखा को बुलाइए और हस्ताक्षर करवाइए!
नंदू- शिखा को बुलाता है जो भी प्रक्रिया था पूरा होता हैं!
शिखा के पैसे शिखा को सौंप दिये जाते है!
रूम मालिक अपने पैकेट से वही दोनों बाली निकालता है!जो आते वक्त सीखा उनको दि थी ! बाली सिखा के हथेली पर रखते हुऐ!दोनों हाथ जोड़कर सिखा से माफी मांगता है!और बोलता है! क्या अब भी तुम मुझे माफ नहीं की !शिखा हकलाती हुई बोलती है, नहीं नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है', मैंने आपको कब का माफ कर दिया!
रूम मालिक- माफ कर दिया तो फिर अभी तक पानी क्यों नहीं पिलाई! तब तक घर के सारे सदस्य वहां इकट्ठा हो जाते हैं, रूम मालिक और सरकारी ऑफिसर दोनों का बढ़िया से स्वागत किया जाता है!सरकारी ऑफिसर वापस चले जाते हैं ,लेकिन रूम मालिक शिखा का कन्यादान करके शिखा के हाथ नंदू के हाथ में सौंप कर , एक पिता का कर्तव्य अदा करते हैं! और जाते-जाते शिखा से बोलते हैं , बेटी मुझ अभागे पिता से मिलने आते रहना! !! समाप्त !!
( लेखक रामू कुमार)
(सभी पाठकों से नम्र निवेदन है की, इसमें छोटी मोटी हुई त्रुटियों के लिए हमें अपना अनुज समझकर क्षमा कीजिएगा ! इसके लिए मैं रामू कुमार सदैव आप सभी का आभारी रहूंगा)🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🇮🇳 !! जय हिंद !!
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