सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 10) में आपका स्वागत है!
गेट से निकलते ही,,-
आकाशीय बिजली, तमाम वातावरण को अपनी आगोश में समेट लेती है!कुछ देर के लिए यैसा प्रतीत होता है,जैसे एका-एक सूर्य अपने तेज रोशनी के साथ जग गया हो!
दोनो एक दूसरे के सहारे, एक ही जगह पे सचेत दशा मे खड़े रहते हैं!
रमेश बाबू--विनोद जी, जान पड़ता है तेज बारिश आने की संभावना है ,कुछ देर के लिए आप यहीं ठहर जाइए!
कर्मचारी- ठहरने को तो ठहर जाते रमेश बाबू,लेकिन बिटिया घर पे अकेली है, डर रही होगी!अभी तो बूंदा-बांदी शुरू हुआ है,तेज होते होते मैं पहुंच जाऊंगा!
इतना कहते हुए दोनों वहां से निकल पड़ते हैं!कर्मचारी अधेड़ उम्र से भी एक चरण आगे था!लेकिन चलने की गती जवान को भी मात दे रहा था!दोनों यैसे सरपट भागते जा रहे थे, जैसे किसी नदी का बांध टूट गया हो!
अभी कुछ दूर क्वार्टर बाकी ही था तभी आंधी की तेज झोंका, छाता लेकर उड़ जाती है!
और कुछ ही क्षणों में बारिश की बूंद,दोनों को अपने आगोश में समेट लेती है!
कर्मचारी अपने दरवाजे पे पहुंचने से चार कदम पहले से ही शिखा को आवाज देता है! शिखा..ये शिखा.. ! शिखा दौड़कर दरवाजा खोल देती है!दोनों के हाथ में छाता न देखकर,अचानक बोल पड़ती है!छाता वही भूलकर दोनों भीगते हुए आ गए?
कर्मचारी-- भला बारिश में भी किसी का छाता छूटता है ?
शिखा--तो फिर छाता क्या हो गया?
कर्मचारी-- झल्लाते हुए,आंधी में उड़ गया,चलो सवाल-जवाब बंद करो, पहले तौलिया ले आओ,
शिखा तौलिया लेकर आती है,कर्मचारी नंदू को तौलिया देते हुए ये..लो पानी साफ कर लो,तब तक मैं कपड़े लेकर आता हूं!कर्मचारी फिर वही कपड़ा लाकर नंदू को देता है, जिससे नंदू पहले से परिचित था!
कर्मचारी--सीखा उपले पड़े हैं?
शिखा-- जी...!
कर्मचारी--जल्दी से आग जलाओ सर्दी लग रही है!
और सुनो खाना भी वहीं लेकर आना,,
दोनों जलते हुए आग के पास बैठकर खाना खाते हैं, थोड़ी बहोत बातचीत होती है! और फिर सो जाते हैं!सुबह कर्मचारी रोज की तरह ड्यूटी के लिए तैयार होता है!लेकिन नंदू के कपड़े अभी गीले थे जिसके वजह से वह, अपने क्वार्टर जाने में असमर्थ था!वह कपड़े सुखाने के लिए, आग के पास जाकार बैठ जाता है !
कर्मचारी-- नंदू मैं ड्यूटी के लिए लेट हो रहा हूं, तुम कपड़ा सूख जाने के बाद जाना ,सर्दी बहुत है!
और हां ,आज छुट्टी ले लेना, और क्वार्टर चेंज कर लेना!
कर्मचारी शिखा को आवाज देते हुए,शिखा.. आज नंदू का खाना यहीं बना देना,आज इसे बहुत काम है,खाना पीना बनाने का समय नहीं मिलेगा!इतना कहते हुए कर्मचारी ड्यूटी के लिए निकल जाता है!
नंदू काफी शर्मिला था,जिसके वजह से वह अपने आप को कैदी समझ रहा था! वो बार-बार अपने कपड़े को टटोल टटोलकर देख रहा था ,शायद सूख गया हो!
Read more>>सपनों की उड़ान- भाग 11..
(लेखक रामू कुमार)
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