मेरे भोले दानी बाबा, पहिरेले मृगछाला,
भूत बैताल को वह, संघ मे नचाते हैं!
विषधर पेन्हें माला, तीन नैन वाले बाबा,
डमरू के तान पर, बसहा बुलाते हैं!
पूजते हैं नर नारी, कहके जट्टा के धारी,
जट्टा मेसे अपने वो, गंगा जी बहाते हैं!
भांग धतुरा अछत् , संगही में बेलपत्र,
मिलके भगत जन, उनको चढ़ाते हैं!
( लेखक रामू कुमार)
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