आइए बैठकर कुछ बात किया जाए'
दिले कशमकश को समाप्त किया जाए!
दूरियां नजदीकियां कुछ भी नहीं रहा'
अब एक नई मंजिल तलाश किया जाए!
हर किसी को चाहिए रंगीन महफिले'
आइए मुकम्मल इश्क की शुरुआत किया जाए!
कैद हो चुका था तन्हाई की जंजीरो में'
अब इन जंजीरों से आजाद किया जाए!
कांटो से भरी गुलशन को रौंदा था हमने'
मिलकर उन जख्मों से सवाल किया जाए!
मैंखानों की प्यालो पर कुछ छाप छोड़े थे हमने'
आइए उन छापो को साफ किया जाए!
उदासी की चादर ओढ़ा रखा था फूलों को'
आइए उसे हटाकर खुशमिजाज किया जाए!
मीट रही थी इबादत की लकीर मेरे हाथों से'
फिर से नई लकीरों का आगाज़ किया जाए!
आइए बैठकर कुछ बात किया जाए'
दिले कशमकश को समाप्त किया जाए!
(लेखक रामू कुमार)
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