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यारी ( दोहा)

मन ही मन में सोंचते,किसे बनाउँ यार! जहां कलम की काम है,का करिहें तलवार!!       ( लेखक रामू कुमार)

भोले दानी

 मेरे भोले दानी बाबा, पहिरेले मृगछाला, भूत बैताल को वह, संघ मे नचाते हैं!  विषधर पेन्हें माला, तीन नैन वाले बाबा, डमरू के तान पर, बसहा बुलाते हैं! पूजते हैं नर नारी, कहके जट्टा के धारी, जट्टा मेसे अपने वो, गंगा जी बहाते हैं! भांग धतुरा अछत् , संगही  में बेलपत्र, मिलके भगत जन, उनको चढ़ाते हैं!          ( लेखक रामू कुमार)

दोहा

  कोयल सी मीठी लगे,ऐसी बोली बोल!   अंतर्मन हर्षित रहे,मिटे हिया का झोल !      ( लेखक रामू कुमार)

दोहा

      रामायण के छंद मे , मिले राम अवतार !                  अंतर मन से जो पढ़े , मिले ज्ञान भंडार !!                       ( लेखक रामू कुमार)