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उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे

  उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे ! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे !! इनकर सतरंगी रंग ! भरे दिल में उमंग !! नापे धरती से आसमां की दूरी रे ! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!! इनकर काले पीले मूंछ ! लंबे सीधे-साधे पूंछ !! कभी दाएं कभी बाएं देखो मुड़ी रे ! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!! रंग रूप है निराले ! हवा इनको संभाले !! कभी कटे कभी छंटे कहीं जुड़ी रे ! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!! संघ लेके उड़े धागे ! कभी पीछे कभी आगे !! धागा ऐसे काटे जैसे कोई छुड़ी रे ! गिरी गिरी रे पतंग गिरी गिरी रे..!! उड़ी उड़ी रे पतंग उड़ी उड़ी रे..!! गिरी गिरी रे पतंग गिरी गिरी रे..!!                                                ( लेखक रामू कुमार)

मॉडर्न पत्नी

  नई जनानी बड़ी सयानी ! काम काज में आना कानी !! सास करत है चूल्हा चौका ! ससुर घूमते बन कर बौका !! कैंची जैसी मुंह चलावे ! मॉल हॉल में नोट उड़ावे !! खाना इनकर मिले दुकाना ! ब्रेड पकौड़ी और मखाना !! शुबह शाम वह फोन चलावे ! लोल ऐंठ कर रील बनावे !! बन कर घूमे  झांसी रानी ! इनकर करनी देव न जानी !!                                          (लेखक रामू कुमार)

भालू आया भालू आया (हिंदी कविता)

  भालू आया भालू आया ! पेट फुला कर कालू आया!! काले काले बाल बढ़ाए ! झूम झूम कर नाच दिखाए !! सोहन मोहन सीता गीता ! लेकर आओ लाल पपीता !! पेड़ों पर चढ़ जाते भालू ! शहद चाव से खाते भालू !! मिलजुल कर अब पैसे लाओ ! कालू को सब खूब सजाओ !! बांध गले में घंटी माला ! रूठ न जाए भालू काला !!          भालू आया भालू आया,           पेट फुला कर कालू आया.....!                                                   ( लेखक रामू कुमार )