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विषाद की चादर (चौपाई छंद)

  दिन पर दिन अब दुख की रेखा ! काहे क्षेत्र फैलावे हो !! अंतर मन में उपजे पीड़ा ! अक्षुजल नैयन बहावे हो !! राहें चलते बाट बटोही ! रुक रुक मोहे समझावे हो !! विपद् घड़ी में सगे सहोदर ! हर पल तोहे तड़पावे हो !! कलयुग में सब सुख के साथी ! दुख में नाता छोड़ावे हो !! दिन रात कुछो समझ न आवे ! सुंदर काया झुलसाबे हो !!                                         (लेखक रामू कुमार)

शंकर महिमा (चौपाई छंद)

डम डम डम डम डमरू बाजे ! भूत बेताल मिलजुल साजे !! गले बिराजे विषधर माला ! तन पर पहने मृग के छाला !! बैल बसहबा बने सवारी ! हरे विपद सब संकट भारी !! शीश जटा से निकली गंगा ! शीतल करती उनके अंगा !! नीलकंठ है नाम तुम्हारे! सब का जीवन तुही सम्हारे !! जय जय जय जय शंकर दानी ! महिमा तोहर देव बखानी !!                                      !!  लेखक रामू कुमार !!