चिंता की चिता सजा करके! अंदर ही अंदर जलते हो!! औरों की खुशी में जहर मिलाकर ! सोने का कफन पहनते हो !! मुस्कान भरे चेहरे को लेकर! हाट बाजार टहलते हो!! निर्धन काया से भी अक्सर! उल्टी बाजी चलते हो!! औरों के खुशी मे....२ भोजन में जहर मिला करके! इधर उधर से ठगते हो!! कहते हो इसमें अच्छा गुण है! कह कर इतना चलते हो!! औरों के खुशी में....२ माथे पे तिलक लगाकर के! मुख से जहर उगलते हो!! तामसी भोजन रातों में! सुबह हाथ चंदन से मलते हो!! औरों के खुशी में....२ कहते हो निश्चल मानव हूं! औरों के खुशी से जलते हो!! गीता पे हाथ रख कर के! पैसों से बात बदलते हो!! ...
मैं अपनी विचारधारा, उन तमाम लोगों तक पहुंचाना चाहता हूँ । जो हमें एक नई दिशा की ओर अग्रसर करें। मैं अपनी कविता कहानी संवाद इत्यादि के माध्यम से , ओ मंजील हासिल करना चाहता हूं जहां पहुंचकर हमें, अत्यंत हर्ष प्रतीत हो।