सफेद समंदर मन के अंदर ! नाचत नाचत ढेर भयो ! निश्छल मानव इस कलियुग में ढूंढत ढूंढत देर भयो !! समतल मन में चंचल कोकिल ! चित्कार गड़लता सोर कियो हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ! मानवता सब छोड़ दियो ! वेद पुराण भूले सब पंडित ! मुद्रा से धर्म तोल लियो ! रणनीति सी वेद सुना कर ! कटुक वचन का मोल लियो मानव धर्म प्रथम में लेकर! दुजे धर्म प्रभु तेरो जग की मायाा झूठन लागे ! अंत समय कछु घेरो - रामू कुमार !!!लेखक रामू कुमार!!!
मैं अपनी विचारधारा, उन तमाम लोगों तक पहुंचाना चाहता हूँ । जो हमें एक नई दिशा की ओर अग्रसर करें। मैं अपनी कविता कहानी संवाद इत्यादि के माध्यम से , ओ मंजील हासिल करना चाहता हूं जहां पहुंचकर हमें, अत्यंत हर्ष प्रतीत हो।