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मूल मंत्र

  सफेद समंदर मन के अंदर !   नाचत नाचत ढेर भयो !  निश्छल मानव इस कलियुग में ढूंढत ढूंढत देर भयो !!  समतल मन में चंचल कोकिल !  चित्कार गड़लता सोर कियो  हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई !  मानवता सब छोड़ दियो !  वेद पुराण भूले सब पंडित !  मुद्रा से धर्म तोल लियो !  रणनीति सी वेद सुना कर !  कटुक वचन का मोल लियो   मानव धर्म प्रथम में लेकर! दुजे धर्म प्रभु तेरो  जग की मायाा झूठन लागे ! अंत समय कछु घेरो   - रामू कुमार                                                   !!!लेखक रामू कुमार!!!

लुधियाना जकशन

मै लुधियाना स्टेसन पे उतरा ! उतरते ही इधर उधर .नजर दौड़ाया 'शायद कुछ बैठने को मिल जाए क्योंकि गाड़ी आने में अभी काफी समय थी ! दो चार कदम चलने के बाद मुझे एक खाली बेंच नजर आया !मैं बेहिचक वहीं जाकर बैठ गया'तेज गर्मी की वजह से तमाम सजीव झुलस रहे थे ! परंतु  रुमाल नमी ग्रस्त हो चुका था !सामने लगी पंखा गर्म सांस छोड़ रही थी !कुछ बंदर इधर-उधर अंगरक्षक की भांति खड़ा था  खाना खाते व्यक्ति को एकाग्रता पूर्वक देख रहा था! भूख की व्याकुलता मे गाड़ी की तेज भोपू भी उसे विचलित नहीं कर पा रही थी एक रोटी पाते ही सब महाभारत का लड़ाई मचा देता था! एक रोटी ना जाने कितने खंडों में विभाजन हो जाते थे! हम से कुछ ही दूरी पर एक लड़की खीरा बेच रही थी! तन पे ना तो अच्छी कपड़ा थी और ना ही पांव में चप्पल थे ! एक फ्रॉक पहन रखी थी,वह भी इतनी गंदी थी कि दर्शना नामुमकिन था' दोनों हाथों में एक-एक प्लास्टिक की बल्ला पहन रखी थी!जिस पर बार-बार खीरा के पानी लगने से थोड़ी चमकीली लग रही थी!उसके हाथों में एक चाकू था जिसे वह बार-बार फर्श पर रगड़ कर तेज करती थी ! सामने लगे पंखा उनके साथ शरारत कर रहा था !