🌆 सायं काल में उत्पन्न हुई शीतल ओश की बुंदे || आकुल व्याकुल बीछड़े प्राणी अपने अवाश को ढुंढे || झींगुर ने चारो दिशा मे झिंपी झिंपी राग बजाई || वाट बटोही औरत मर्द को पाँव मे पायल पहनाई || बाग बगीयो मे चंचल कोकील मीठी शुर मे धूम मचाई || नजर दौराया चारु ओर प्रथम फुआशा छाया हुआ था || अम्बर मे देखा काली कोयल जो शाम मे गाया हुआ था || छोटे बडे बुजुर्गों ने भी ऊनी कपडा पाया हुआ था|| गाँव लौट कर मैने देखा कुछ बच्चे कर रहे पढा़ई || बुढी काकी पास बैढ कर दुर्गंधीत बींडी को जलाई एक बच्चे ने दिया बुझा कर सब बच्चों से कीया लडा़ई || जुगनू...
मैं अपनी विचारधारा, उन तमाम लोगों तक पहुंचाना चाहता हूँ । जो हमें एक नई दिशा की ओर अग्रसर करें। मैं अपनी कविता कहानी संवाद इत्यादि के माध्यम से , ओ मंजील हासिल करना चाहता हूं जहां पहुंचकर हमें, अत्यंत हर्ष प्रतीत हो।