थे ना हम बदनाम 'तुमने हमको बना दिया! मौत सी ये दर्द भरी' तुमने हमको सजा दिया! गुलशन की दहलीजो पे बिचड़ते थे हम कभी. तुमने मेरे पांव में गमे जंजीर पहना दिया! थे ना हम बदनाम.....2 हर्ष में विषाद की गहरी लकीर खींच कर. तूने मेरी हर तमन्ना बेरहमी से दबा दिया! थे ना हम बदनाम.....2 खुले दिल के दरवाजों को कैसे बंद किया तूने. खोलने से भी ना खुले ए कैसी ताला लगा दिया! थे ना हम बदनाम.....2 दूर भी अंधेरा और पास भी अंधेरा है. सूरज निकल चुके,हुआ नहीं सवेरा है! तूने मेरे दिल को ये कैसा नकाब पहना दिया! थे ना हम बदनाम ,तुमने हमको बना दिया! मौत सी ये दर्द भरी, तुमने हमको सजा दिया! थे ना हम बदनाम......2 (लेखक रामू कुमार)
मैं अपनी विचारधारा, उन तमाम लोगों तक पहुंचाना चाहता हूँ । जो हमें एक नई दिशा की ओर अग्रसर करें। मैं अपनी कविता कहानी संवाद इत्यादि के माध्यम से , ओ मंजील हासिल करना चाहता हूं जहां पहुंचकर हमें, अत्यंत हर्ष प्रतीत हो।